अगर आप खेती से अधिक मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए है, क्योंकि मॉनसून में किसान खरीफ फसलों की खेती कर रहे हैं. ऐसे में आज हम बात करेंगे खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली सोयाबीन की फसल की. इसकी खेती में सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसकी सही किस्मों का चयन करना होता है. कई बार किसान खेती से ठीक पहले असमंजस में रहते हैं क्योंकि मार्केट में सोयाबीन की कई वैरायटी मिलती है. ऐसे में किसान यह फैसला नहीं कर पाते हैं कि कौन सी वैरायटी अच्छी है. ऐसे में आज हम उन किसानों को सोयाबीन की एक ऐसी किस्म के बारे में बताएंगे जो अपने बेहतर उत्पादन के लिए फेमस है. आइए जानते हैं उस उन्नत किस्म के कहां से ले सकते हैं बीज और क्या है उसकी खासियत.
किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर तिलहन फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं. इससे किसानों की बंपर इंकम हो रही है. इसलिए किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती कर रहे हैं. ऐसे में किसानों की सुविधा के लिए राष्ट्रीय बीज निगम ऑनलाइन सोयाबीन की "बसारा" किस्म का बीज बेच रहा है. इस बीज को आप एनएससी के ऑनलाइन स्टोर से खरीद कर बंपर कमाई कर सकते हैं. साथ ही इसे ऑनलाइन ऑर्डर करके अपने घर भी मंगवा सकते हैं.
सोयाबीन की बसारा (BASARA) एक खास किस्म है. इसकी खेती खास तौर पर खरीफ सीजन में की जाती है. सोयाबीन की इस किस्म की खासियत है कि यह किस्म येलो मोजेक वायरस , ब्लाइट, और चारकोल रॉट जैसे प्रमुख रोगों के प्रति सहनशील है. इसमें मौजूद प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट्स इसे पोषण से भरपूर बनाते हैं. इसकी खेती विशेष रूप से खरीफ सीजन में तेलंगाना में की जाती है.
अगर आप सोयाबीन की खेती करना चाहते हैं तो बसारा किस्म के 30 किलो वाले बीज का पैकेट खरीदना चाहते हैं तो बता दें कि बाजार में सोयाबीन की इस किस्म के 30 किलो का पैकेट फिलहाल 29 फीसदी छुट के साथ 2400 रुपये है घर बैठे नलाइन मंगवा सकते हैं. वहीं, इसे खरीद कर आप आसानी से सोयाबीन की खेती कर सकते हैं. साथ ही इसकी खेती से अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं.
सोयाबीन की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत को तैयार कर लें. फिर लाइनों के बीच की दूरी 45 सेमी रखें. बुवाई के लिए अनुशंसित बीज को 2-3 सेमी की गहराई पर बोएं और पौधों के बीच की दूरी 5-10 सेमी रखें. प्रति एकड़ बीज दर 25 से 30 किलो होना चाहिए. बीज उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा, ब्रैडिराइजोनबियम जैपोनिकम और पीएसबी/ट्राई बायोफर्टिलाइजर का उपयोग करें. इससे बीजों की सड़न कम होती है और पौधों की वृद्धि में मदद मिलती है.