मक्के की खेती उत्तर प्रदेश की किसानों को भाने लगी है. बाराबंकी के कुछ किसानों को तो इसकी खेती इतनी पसंद आई कि वह मेंथा की जगह अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाली मक्के की खेती करने लगे. वहां इसके रकबे में लगातार विस्तार हो रहा है. मक्के की खेती के यूं ही किसान मुरीद नहीं हुए. इसमें योगी सरकार मिले प्रोत्साहन की महत्वपूर्ण भूमिका है. खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की सुनिश्चित गारंटी और त्वरित मक्का विकास योजना के तहत किसानों को मिलने वाले लाभ की.
प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले के किसान खासे प्रगतिशील हैं. रामशरण वर्मा जैसे किसान तो पूरे देश के लिए नजीर हैं. इसके लिए इनको 2019 में पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है. बाराबंकी की पहचान मेंथा की खेती के लिए रही है. पर हाल के कुछ वर्षों के दौरान जायद के सीजन में यहां के कुछ क्षेत्रों के किसान अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाले मक्के की खेती करने लगे हैं.
उल्लेखनीय है कि बीते तीन वर्षों से मसौली, रामनगर, फतेहपुर और निंदूरा ब्लॉक में किसानों को मक्का की खेती के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें बीज भी उपलब्ध करवाए गए. पहले जायद में खेत खाली रहते थे या मेंथा की खेती होती थी. अब मक्के की खेती हो रही है. उपज अच्छी हो रही है और बहुउपयोगी होने के कारण बाजार में दाम (प्रति कुंतल 2225 रुपये) भी अच्छे मिल जा रहे हैं. कम अवधि की फसल होने के नाते रबी एवं खरीफ की अन्य फसलों की खेती भी किसानों के लिए संभव हो जा रही है. यही वजह है कि किसानों में पिछले कुछ वर्षों से मक्के की खेती का क्रेज बढ़ा है.
बता दें कि विपणन वर्ष 2024-2025 के लिए योगी सरकार ने प्रति कुंतल मक्के की एमएसपी 2225 रुपये घोषित की है. 15 जून से इसकी खरीद भी शुरू हो चुकी है. यह खरीद 31 जुलाई तक जारी रहेगी. जिन जिलों में एमएसपी पर मक्के की खरीद होनी है, उनके नाम हैं बुलंदशहर, बदायूं, अलीगढ़, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर, औरैया, कन्नौज, इटावा, फर्रुखाबाद, बहराइच, बलिया, गोंडा, संभल, रामपुर, अयोध्या एवं मीरजापुर.
इससे पहले औरैया के एक कार्यक्रम में सीएम योगी ने मक्के की खेती करने वाले किसानों की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश 20-25 जिलों में मक्के की खेती हो रही है. किसानों को प्रति हेक्टेयर करीब ढाई लाख रुपये की आय हो रही है. यानी एक लाख रुपये प्रति एकड़. यही नहीं प्रगतिशील किसान बेहतर फसलचक्र अपना कर तीन फसलों (आलू, मक्का एवं धान) की खेती कर अपनी आय और बढ़ा सकते हैं. अपने संबोधन में उन्होंने मक्के की बहुउपयोगिता की भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि यह एक पौष्टिक आहार है. इससे स्वीट कार्न, बेबीकॉर्न, बायोफ्यूल व बायो प्लाास्टिक भी इससे बन सकता है.
हर तरह की भूमि में संभव है मक्के की खेती
बात चाहे पोषक तत्वों की हो या उपयोगिता की. बेहतर उपज की करें या सहफसली खेती या औद्योगिक प्रयोग की. हर मौसम और हर तरह की भूमि में पैदा होने वाले मक्के का जवाब नहीं. बस जिस खेत में मक्का बोना है उसमें जल निकासी का बेहतर प्रबंधन जरूरी है.
मालूम हो कि मक्के का प्रयोग इथेनॉल उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों, पशुओं एवं पोल्ट्री लिए पोषाहार, दवा, पेपर और एल्कोहल इंडस्ट्री में होता है. इसके अलावा भुट्टा, आटा, बेबीकार्न और पापकार्न के रूप में ये खाया जाता है. किसी न किसी रूप में ये हर सूप का अनिवार्य हिस्सा होता है. ये सभी क्षेत्र संभावनाओं वाले हैं.
बहुपयोगी होने की वजह से समय के साथ मक्के की मांग भी बढ़ेगी. इस बढ़ी मांग का अधिकतम लाभ प्रदेश के किसानों को हो इसके लिए सरकार मक्के को खेती के प्रति किसानों को लगातार जागरूक कर रही है. उनको खेती के उन्नत तौर तरीकों की जानकारी दे रही है. किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है.
पक्के में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व भी पाए जाते हैं इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल मिलते हैं। इन्हीं खूबियों के नाते इसे अनाजों की रानी कहा गया है.
विशेषज्ञों की मानें तो उन्नत खेती के जरिये मक्के की प्रति हेक्टेयर उपज 100 कुंतल तक भी संभव है. प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उत्पादन लेने वाले तमिलनाडु की औसत उपज 59.39 कुंतल है. देश के उपज का औसत 26 कुंतल एवं उत्तर प्रदेश के उपज का औसत 2021-22 में 21.63 कुंतल प्रति हेक्टेयर था. ऐसे में यहां मक्के की उपज बढ़ने की भरपूर संभावना है.
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) प्रभारी डॉ. एसके तोमर के अनुसार खरीफ के फसल की बोआई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है. अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मई के दूसरे या तीसरे हफ्ते में भी इसकी बोआई की जा सकती है. इससे मानसून आने तक पौधे ऊपर आ जाएंगे और भारी बारिश से होने वाली क्षति नहीं होगी. उन्होंने कहा कि प्रति एकड़ करीब 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.अच्छी उपज के लिए बोआई लाइन में करें. लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें. उपलब्ध हो ती बेड प्लांटर का प्रयोग करें.
ये भी पढ़ें-
यूपी में आज से शुरू होगा तेज बारिश का सिलसिला, IMD ने जारी किया अलर्ट, जानें मौसम का हाल
मछुआरों को सब्सिडी पर मिलेगा थ्री व्हीलर आइस बॉक्स, इस स्कीम में तुरंत करें आवेदन