अमरूद की पत्तियां लाल पड़ने लगें तो हो जाएं सावधान, इस गंभीर बीमारी से नष्ट हो सकता है पूरा पेड़

अमरूद की पत्तियां लाल पड़ने लगें तो हो जाएं सावधान, इस गंभीर बीमारी से नष्ट हो सकता है पूरा पेड़

ब्रॉजिंग अमरूद में एक जटिल पोषक तत्व की कमी से होने वाला विकार है. जो फॉस्फोरस, पोटैशियम और जिंक की कमी के कारण होता है. यह समस्या तब होती है जब पर्याप्त संतुलित उर्वरकों का उपयोग किए बिना फसलों की लगातार कटाई की जाती है.

अमरूद की फसल को इस रोग से बचाने का तरीकाअमरूद की फसल को इस रोग से बचाने का तरीका
प्राची वत्स
  • Noida,
  • Feb 06, 2024,
  • Updated Feb 06, 2024, 4:32 PM IST

अमरूद एक प्रसिद्ध फल है जिसका उपयोग आमतौर पर स्वादिष्ट फल और फल से तैयार विभिन्न खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है. इसे पोषण संबंधी संदर्भ माना जाता है, लेकिन इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं, विशेष रूप से ब्रोमेलैन एंजाइम की सामग्री के कारण, जो आमतौर पर बहुत ताज़ा होता है. अमरूद के फल का वृक्ष बागवानी में महत्वपूर्ण स्थान है. इसकी बहुमुखी प्रतिभा और पोषण मूल्य को ध्यान में रखते हुए लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं. इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इससे जैम, जेली, अमृत आदि संरक्षित उत्पाद तैयार किये जाते हैं.

अमरूद में पाए जाने वाले पोषक तत्व

इसकी सफल खेती कई प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में की जा सकती है. सर्दियों के मौसम में अमरूद अधिक और सस्ता मिलता है कि लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं. यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद फल है. इसमें विटामिन सी काफी मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा विटामिन ए और बी भी पाया जाता है. इसमें लोहा, चूना और फास्फोरस अच्छी मात्रा में होता है. अमरूद की जेली और बर्फी (पनीर) बनाई जाती है. इसे लंबे समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता है. जिस वजह से अमरूद की मांग हमेशा बनी रहती है. लेकिन अमरूद की खेती कर रहे किसानों को कई समस्याओं से भी निपटना पड़ता है. आपको बता दें अमरूद के पेड़ में कई बार रोग की वजह से पूरा फसल बर्बाद हो जाता है. पत्तियां लाल पड़ने लगती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें बचाव. 

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क्या है ब्रॉजिंग रोग और लक्षण?

ब्रॉजिंग अमरूद में एक जटिल पोषक तत्व की कमी से होने वाला विकार है. जो फॉस्फोरस, पोटैशियम और जिंक की कमी के कारण होता है. यह समस्या तब होती है जब पर्याप्त संतुलित उर्वरकों का उपयोग किए बिना फसलों की लगातार कटाई की जाती है. या जब पौधे की जड़ पर अत्यधिक दबाव पड़ता है. इसके कारण पौधा फास्फोरस को अवशोषित नहीं कर पाता है. जैसे ही पौधे पर फल लगने लगते हैं, पोषक तत्व पुरानी पत्तियों से फलों की ओर चले जाते हैं. जिस वजह से पत्तियों पर तांबे जैसी धारियां दिखाई देने लगती हैं. पुरानी पत्तियों की शिराओं के बीच का स्थान लाल या बैंगनी रंग का हो जाता है.

कैसे करें इससे बचाव?

इससे फोटोसैंथेसिस की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है. जिस वजह से रोग से ग्रसित पौधों की बढ़वार रुक जाती है. यह ऊपर से नीचे की ओर पोषक तत्व की कमी के लक्षण सूखकर मरने लगते हैं और फल भी सख्त हो जाते हैं. इलाहाबाद सफेदा और लखनऊ-49 में इसकी समस्या लाल गूदे वाली किस्म से ज्यादा देखी गई है. इससे बचाव के लिए बीमारी की शुरूआती अवस्था में ही 20 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 1 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट, आधा कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश एवं 100 ग्राम जिंक सल्फेट को मिलाकर कर प्रति पौधे की दर से डाल दें. साथ ही पौधे के चारों तरफ से हल्की निराई-गुड़ाई भी कर दें. अप्रैल और जून में जिंक सल्फेट 6 ग्राम तथा बुझा हुआ चूना 4 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करने से जस्ते की कमी को दर किया जा सकता है. 

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