पपीते के यूं तो कई फायदे होते हैं और इनके बारे में हर कोई जानता है. लेकिन अब कृषि विशेषज्ञ किसानों को पपीते के दूध के फायदों के बारे में बता रहे हैं. उनका मानना है कि पपीते का दूध किसानों की किस्मत संवार सकता है. कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को बताया है कि वो कैसे पपेन को निकालकर अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने इस तरफ पहल की है. बताया जा रहा है कि संस्थान अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के तहत पपीते के कच्चे फलों से दूध जिसे पपेन भी कहा जाता है, उसे निकालने की योजना पर काम कर रहा है. इसकी जानकारी किसानों को दी जा रही है.
पपेन का प्रयोग दवा से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों तक में होता है. बिहार में करीब 1.90 हजार हेक्टेयर में पपीते की खेती होती है. इससे करीब 42.72 हजार टन फल का उत्पादन होता है. अकेले समस्तीपुर में 54 हेक्टेयर में खेती की जाती है. किसान अभी सिर्फ फल उत्पादन तक ही सीमित हैं. पपेन उत्पादन से भी जुड़ जाएं तो अतिरिक्त आमदनी कर सकेंगे. अभी एक हेक्टेयर में पपीते की खेती में करीब तीन लाख रुपए की लागत आती है. आठ से 10 लाख का फल निकलता है. इतने हेक्टेयर में ढाई से तीन सौ लीटर दूध निकाला जा सकता है. बाजार में इसकी कीमत 150 रुपये प्रति लीटर है.
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पपेन निकालने के लिए तीन महीने पुराने फल पर करीब तीन मिमी गहराई के 4-5 चीरे लंबाई में लगाए जाते हैं. इसके बाद दूध को मिट्टी या एल्युमिनियम के बर्तन में इकट्ठा किया जाता है. दूध के लिए ऐसे फलों का चुनाव होता है, जो छोटे होते हैं. जिसकी बिक्री पर अच्छी कीमत नहीं मिल सकती. ऐसे फलों को चीरा लगाने के बाद पकने दिया जाता है. इन फलों का उपयोग जैम, मुरब्बा, शेक आदि के रूप में भी किया जा सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, असोम और तमिलनाडु के किसान दूध उत्पादन कर रहे हैं. बिहार के भी किसान करें, इस पर काम हो रहा है. इसके प्रशिक्षण की व्यवस्था विश्वविद्यालय में की गई है. विशेषज्ञों के मुताबिक पपेन एक पाचक एंजाइम है. पेट का अल्सर, दस्त, एक्जिमा, लीवर के रोग के इलाज में दवा तैयार की जाती है. इसका उपयोग प्रोटीन को पचाने में भी होता है. इसके अलावा सौंदर्य प्रसाधन का सामान बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है. आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियां इसकी बड़ी खरीदार हैं.
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