
खरपतवार वे अनचाहे पौधे होते हैं जो गेहूं के साथ-साथ अपने आप उग जाते हैं. ये पौधे गेहूं के लिए बने पानी, खाद और जगह को खा जाते हैं. अगर समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए, तो ये गेहूं के पौधों की बढ़वार रोक देते हैं. इससे गेहूं की बालियां छोटी रह जाती हैं और पैदावार कम हो जाती है. इसलिए खरपतवार को समय रहते हटाना बहुत जरूरी है.
गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण का सबसे अच्छा समय बुवाई के 30 से 35 दिन बाद होता है. इस समय खरपतवार छोटे होते हैं और आसानी से खत्म किए जा सकते हैं. जब खरपतवार में 2 से 4 पत्तियां आ जाएं और पहली सिंचाई के 4 से 5 दिन बीत जाएं, तब दवा का छिड़काव करना सबसे अच्छा माना जाता है. सही समय पर दवा डालने से कम मेहनत में अच्छा परिणाम मिलता है.
कुछ खरपतवार चौड़ी पत्ती वाले होते हैं, जैसे बथुआ, जंगली पालक, कृष्णनील, गाजर घास, जंगली बथुआ, पत्थरचट्टा और सरसों. ये दिखने में छोटे होते हैं, लेकिन गेहूं को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. इन खरपतवारों के लिए Metsulfuron Methyl 20% WP दवा का उपयोग किया जाता है. इसकी मात्रा 8 ग्राम प्रति एकड़ रखनी चाहिए. इस दवा को 150 से 200 लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर खेत में समान रूप से छिड़काव करें. इससे चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार धीरे-धीरे सूखकर खत्म हो जाते हैं.
कुछ खरपतवार पतली या संकीर्ण पत्ती वाले होते हैं, जैसे गुल्ली डंडा, जंगली जई (काली जई), मोथा और प्याजा. ये खरपतवार गेहूं जैसे ही दिखते हैं, इसलिए इन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है. इनके नियंत्रण के लिए Clodinafop Propargyl 15% WP दवा का प्रयोग किया जाता है. इस दवा को 120 से 150 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करना चाहिए. सही मात्रा में दवा डालने से ये खरपतवार पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं.
अगर दवा कम मात्रा में डाली जाए, तो खरपतवार पूरी तरह नहीं मरते. ज्यादा मात्रा में दवा डालने से गेहूं की फसल को नुकसान हो सकता है. इसलिए हमेशा सही समय, सही दवा और सही मात्रा का ही उपयोग करें. ऐसा करने से गेहूं की फसल स्वस्थ रहती है और पैदावार बढ़ती है. पहली सिंचाई के बाद सही समय पर खरपतवार नियंत्रण करने से गेहूं की फसल मजबूत बनती है. खेत साफ रहता है, पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और किसान को ज्यादा उत्पादन मिलता है. यही अच्छी खेती की पहचान है.
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