खरीफ सीजन के शुरू होने से पहले हर साल खरीफ की कई प्रमुख फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP जारी होता है. उसमें तिलहन की फसल भी होती है. इसमें एक फसल रामतिल भी है जिसे नाइजर सीड कहा जाता है. वहीं, बात करें मौजूदा खरीफ सीजन की फसलों की एमएसपी की तो रामतिल की एमएसपी में 5100 रुपये का इजाफा हुआ है. ऐसे में किसानों के लिए ये जानना लाजिमी हो जाता है कि कब और कैसे होती है रामतिल की खेती.
देश के कई राज्यों में रामतिल की फसल आदिवासियों के खानपान और अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखा का काम करती है. आदिवासी आबादी रामतिल के तेल का प्रयोग खाने बनाने के लिए करती है. रामतिल में लगभग 40 प्रतिशत तेल होता है. इसे जैतून के तेल का अच्छा विकल्प माना जाता है. आदिवासी भुने तिल को नाश्ते में खाना पसंद करते हैं. वहीं, रामतिल के लड्डू भी बनाए जाते हैं. तेल निकालने के बाद बचने वाली खल का इस्तेमाल मवेशियों को चारे के रूप में भी किया जाता है. इसमें 31 से 40 प्रतिशत प्रोटीन होता है. रामतिल के तेल के औषधीय गुण हैं. इसका इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स, परफ्यूम और अन्य उद्योगों में किया जाता है.
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रामतिल की खेती की खास बात यह है कि यह फसल लगभग बंजर जैसी जमीन पर भी आसानी से हो जाती है. मॉनसून की पहली हल्की बारिश के बाद मिट्टी नम होने पर दो बार हल चलाकर रामतिल के बीज खेतों में बिखेर दिए जाते हैं. उसके बाद दो बारिश पड़ने पर रामतिल के पौधे उग आते हैं. साथ ही इसमें खाद या कीटनाशक डालने की जरूरत नहीं पड़ती है और तीन महीने में फसल तैयार हो जाती है.
खरीफ सीजन की इस फसल की बुवाई का समय देश में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. तो फिर ऐसा क्या है कि इस फसल का रकबा लगातार कम होता जा रहा है. अभी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भी रामतिल की खेती हो रही है.
रामतिल के अलावा हिंदी में इसे जगनी या जटांगी, गुजराती में रामतल, मराठी में कराले या खुरसनी, कन्नड़ में उचेलू, ओडिया में अलाशी, बंगाली में सारगुजा और असमी में सोरगुजा कहा जाता है. वहीं, बात करें इसकी खेती की तो धीरे-धीरे करके इसकी खेती कई राज्यों में कम हो रही है.