देश के कई राज्यों में मॉनसून की शुरुआत हो गई है. इसके साथ ही किसान खरीफ फसलों की खेती भी करने लगे हैं. धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है. धान की खेती करने वाले ज्यादातर किसान इस उम्मीद में खेती करते हैं कि उन्हें अन्य फसलों के मुकाबले इससे बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफा मिलेगा. धान की फसल में एक चिंता वाली बात ये है कि इसे तैयार करने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो बिना पानी के 21 दिनों तक जिंदा रह सकती है. ये किस्म पहाड़ी इलाकों में अच्छी उपज देती है. ऐसे में आइए जानते हैं कौन सी है वो किस्म और क्या है उसकी खासियत.
सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने धान की सूखा रोधी नई किस्म आइआर-64 डीआरटी-1 तैयार की है. यह बीज पहाड़ी और पानी की कमी वाले इलाकों के लिए बेहद उपयोगी है. सूखे की स्थिति में भी धान की यह किस्म बिना पानी के 21 दिनों तक जिंदा रह सकती है, जबकि अन्य धान पानी की कमी से मुरझा जाते हैं या मर जाते हैं. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो इस धान की किस्म से एक एकड़ में 16 क्विंटल और एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल तक धान की उपज मिल सकती है. इसमें सूखा सहने की क्षमता है और 110 दिनों में ही फसल तैयार हो जाती है.
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बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश सहित देश के कई उत्तर भारत वाले राज्यों में मॉनसून अब दस्तक देने वाला है. ऐसे में किसानों को धान की नर्सरी लगाने के लिए खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. बीज लगाने से पहले नर्सरी में एक मीटर के आकार में 20 ग्राम फ्यूराडान का भुरकाव करके ही बीज डालना चाहिए. फ्यूराडान के प्रयोग से मिट्टी में दीमक और मिट्टी के अन्य कीटों के प्रकोप से बचाया जा सकता है.
बात करें धान की इस खास किस्म की खेती की तो मॉनसून के आगमन के बाद या 15 से 25 जून के बीच इस धान का बिचड़ा डाल देना सही रहता है. इसे प्रति एकड़ में 16 किलो और एक हेक्टेयर में 40 किलो बीज डाला जाना चाहिए. वहीं, बिचड़ा तैयार होने के 21 दिनों के बाद खेतों में इसकी रोपाई की जानी चाहिए. वैज्ञानिकों ने बिचड़े से निकले दो-दो पौधों को एक साथ रोपनी की सलाह दी है. इस किस्म के लिए संतुलित मात्रा में खाद देनी चाहिए.
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