अगर आप किसान हैं और खेती में कुछ नया करना चाहते हैं तो इस खरीफ सीजन में शलजम की फसल उगाएं इस फसल से आपको डबल मुनाफा हो सकता है. इसमें खनिज और विटामिन की भरपूर मात्रा होने के कारण इम्युनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता है.इसका सेवन हृदय रोग, रक्तचाप एवं सूजन आदि बीमारियों में रामबाण का काम करता है. इसके चलते बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती हैं. शलजम की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं
शलजम की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है. इसमे औषधीय गुण होने के कारण बाजार में इसकी साल भर डिमांड रहती है ऐसे में किसानों के लिए शलजम की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती हैं. शलजम की देसी किस्मों की बिजाई का उचित समय अगस्त-सितम्बर,जबकि यूरोपी किस्मों का अक्तूबर- नवंबर में होता हैं खरीफ सीजन चालू है ऐसे में किसान शलजम की सही तरीके से खेती अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकता हैं.
शलजम की खेती के लिए बलुई या दोमट अथवा रेतीली मिट्टी फायदेमंद होती है शलजम की जड़ें भूमि के अंदर होती हैं, इसलिए इसे नर्म जमीन की जरूरत होती है. यह ठंडी जलवायु वाली फसल है. इसके लिए 20 से 25 सेंटीग्रेड तापमान चाहिए.
खेत की जोताई करें और खेत को नदीन रहित और रोड़ियों रहित बनायें. गाय का गला हुआ गोबर 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें. बिना गले हुए गोबर का प्रयोग करने से बचे इससे जड़ें दोमुंही हो जाती हैं.
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पूसा स्वेती, पूसा कंचन, व्हाईट 4, रेड 4, शलजम एल- 1 और पंजाब सफेद आदि और यूरोपियन शीतोष्ण किस्में- गोल्डन, पर्पिल टाइप व्हाईट ग्लोब, स्नोबल, पूसा चन्द्रमा, पूसा स्वर्णिम, आदि प्रमुख है.
शलजम की बुआई पंक्तिबद्ध तरीके से की जानी चाहिए. बीज उथले वाले हल की सहायता से 20 से 25 सेमी की दूरी पर बनाए गए कूढों में बोया जाए. पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी की होनी चाहिए. जब पौधे बढ़ जाएं और तीन पत्तियों के हो जाएं तो फालतू के पौधों को निकाल कर उनकी आपस की दूरी 10 सेमी की कर देनी चाहिए.
अंकुरण के 10-15 दिनों के बाद छंटाई की प्रक्रिया करें. मिट्टी को हवादार और नदीन-मुक्त बनाये रखने के लिए कसी के साथ गोड़ाई करें. बिजाई के दो से तीन सप्ताह बाद एक बार गोडाई करें. गोडाई के बाद मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएं.
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