ड्वार्फ वायरस को Southern Rice Black Streaked Dwarf Virus कहा जाता है. यह वायरस धान की फसल को बुरी तरह प्रभावित करता है. इसके कारण पौधे का विकास रुक जाता है, पौधा बौना रह जाता है और पोषक तत्वों का सही तरह से सेवन नहीं कर पाता. इसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है. यह वायरस सफेद पीठ वाले पत्तियों के कीट (White-backed plant hopper) के जरिए फैलता है. ये कीट पौधे से रस चूसते हैं और वायरस को एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचाते हैं.
अंबाला जिले के मुल्लाना, साहा और नारायणगढ़ इलाकों में यह वायरस लगभग 400 एकड़ में फैल चुका है. सबसे ज्यादा असर हाइब्रिड, परमल किस्मों और जल्दी बोई गई फसलों पर देखा गया है.
हमिदपुर गांव के पूर्व सरपंच जसबीर सिंह ने बताया कि उन्होंने 54 एकड़ में धान लगाया है, जिसमें से 14 एकड़ में फसल इस वायरस से प्रभावित है. इसी तरह, गर्नाला गांव के किसान परमजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने 18 एकड़ में धान बोया है और उनकी फसल में भी डवार्फ के लक्षण दिख रहे हैं.
किसानों का कहना है कि कीटनाशकों के इस्तेमाल के बाद भी खास असर नहीं दिख रहा है. साथ ही, संक्रमित पौधों को उखाड़कर फेंकना व्यवहारिक नहीं है, इसलिए उन्होंने "वेट एंड वॉच" की नीति अपनाई है.
राइस रिसर्च स्टेशन कौल, भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद, और कृषि विज्ञान केंद्र टेहला की टीमों ने प्रभावित खेतों का दौरा किया है और पौधों व कीटों के सैंपल जांच के लिए लिए हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय पर वायरस को नियंत्रित नहीं किया गया, तो 80-90% तक फसल का नुकसान हो सकता है. वहीं, कीटनाशकों का छिड़काव किसानों पर प्रति एकड़ लगभग ₹2000 का आर्थिक बोझ डाल रहा है. डवार्फ वायरस एक गंभीर समस्या बन चुका है. किसानों को चाहिए कि वे कृषि विभाग की सलाह का पालन करें, नियमित निगरानी करें और वायरस के लक्षण दिखते ही तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करें. समय रहते रोकथाम से ही फसल को बचाया जा सकता है.