गुलाबी सुंडी यानी पिंक बॉलवर्म (PBW)उत्तर भारत में कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बुरा सपना बन गई है. इसके हमले से पूरी की पूरी फसल चौपट हो जाती है. राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में तो इसकी इतनी दहशत हो गई है कि कई किसान अब कपास की खेती से बचने लगे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो गुलाबी सुंडी बीटी कॉटन की फसलों को खासतौर पर नुकसान पहुंचाती है. शायद ही किसी को मालूम होगा कि बीटी कॉटन को ईजाद ही इसलिए किया गया था कि यह किस्म गुलाबी सुंडी के हमले से सुरक्षित रह सकेगी. लेकिन अब इस पर ही सबसे ज्यादा हमले होते हैं. कपास के किसानों को इससे इतना ज्यादा नुकसान होने लगा है कि कुछ तो आत्महत्या जैसा कदम तक उठाने लगे हैं.
पीबीडब्ल्यू प्रकोप को रोकने के लिए दो प्राथमिक तकनीकें हैं और दोनों ही कीटों की प्रजनन प्रक्रिया को बाधित करने पर निर्भर करती हैं. इनकी लागत करीब 3,300 से 3,400 रुपये प्रति एकड़ है. पहली तकनीक के तहत कपास के पौधों के तने पर टहनियों के पास एक तरह के पेस्ट का प्रयोग किया जाता है. इस तकनीक को पर्यावरण के अनुकूल बताया जाता है और यह पश्चिमी देशों में फसल सुरक्षा का ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ माना जाता है.
विशेषज्ञों के अनुसार यह पेस्ट सिंथेटिक फेरोमोन छोड़ता है जो नर कीटों को आकर्षित करते हैं. लेकिन इन फेरोमोन की बड़े स्तर पर मौजूदगी की वजह से ये नर कीट मादा कीटों को ढूंढ़ने में असमर्थ होते हैं. इससे प्रजनन प्रक्रिया बाधित होती है और सुंडी की आबादी कम होती है. करीब 7000 कपास के पौधों वाले एक एकड़ के खेत के लिए, पेस्ट को पूरे खेत में फैले 350-400 पौधों पर, कुल तीन बार – बुवाई के 45-50 दिन, 80 दिन और 110 दिन बाद लगाया जाना चाहिए.
दूसरी तकनीक, जिसे पीबी नॉट तकनीक के नाम से जाना जाता है, भी इसी सिद्धांत पर काम करती है. इसमें, फेरोमोन डिस्पेंसर के साथ धागे की गांठें कपास के खेतों पर रणनीतिक रूप से रखी जाती हैं ताकि नर पतंगे भ्रम में पड़ जाएं और वो मादाओं को न खोज सकें. इस डिस्पेंसर को कपास के पौधों पर तब बांधना होता है जब वे 45-50 दिन के हो जाते हैं.
बीटी कॉटन जिसे गुलाबी सुंडी से प्रतिरोध के लिए बनाया गया था, अब उसका शिकार है. यूं तो सुंडी के हमलों को रोकने के लिए प्रभावी तकनीकें मौजूद हैं लेकिन फिर भी इन तरीकों को किसानों ने बड़े स्तर पर अपनाया नहीं है. लुधियाना स्थित कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे ही फसल में गुलाबी सुंडी का पता चले कीटनाशकों का छिड़काव तुरंत करें. बार-बार छिड़काव करने पर ये अप्रभावित कपास के गुच्छों को बचा सकते हैं. लेकिन अगर किसी गुच्छे में पहले से कीट दाखिल हो चुके हैं तो फिर उनको बचा पाना मुश्किल है.
विशेषज्ञों ने किसानों को सुझाव दिया है कि जिन खेतों में गुलाबी सुंडी का संक्रमण हो, वहां पर कम से कम एक मौसम के लिए कपास की फसल लगाने से बचें. इसके अलावा किसानों को जल्द से जल्द फसल अवशेषों को जला देना चाहिए. साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्वस्थ और अस्वस्थ बीज (या कपास) के बीच कोई मिश्रण न हो. कपास कारखानों पर भी यही सलाह लागू होती है कि स्वस्थ और अस्वथ बीजों को अलग-अलग रखा जाए.
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