पंजाब में पराली जलाने के मामले में पिछले साल के मुकाबले तेजी से गिरावट आई है. इस साल प्रदेश में 9 नवंबर तक पराली जलाने के 23,620 दर्ज किए गए. जबकि पिछले साल 15 सितंबर से 9 नवंबर के बीच पराली जलाने के 34,868 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, साल 2021 में इसी समान अवधि में 47,409 मामले रिकॉर्ड किए गए थे. ऐसे में हम कह सकते हैं, पंजाब में पराली जलाने के मामले साल दर साल तेजी से कम हो रहे हैं.
पंजाब में 9 नवंबर को खेतों में आग लगने की 639 घटनाएं सामने आई थीं. जबकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसी तारीख को साल 2022 और 2021 के दौरान पराली जलाने के क्रमशः 1778 और 5079 मामले दर्ज किए थे. वहीं, पर्यावरणविदों का कहना है कि मौजूदा खरीफ सीजन पिछले सीजन की तुलना में असामान्य है. इस वर्ष पराली जलाने के कुल मामलों में कमी आने का एक कारण ये भी है. पर्यावरणविदों की माने तो इस बार मानसून का देरी से आगम हुआ. वहीं, कई जगहों पर अधिक बारिश होने की वजह से धान की फसल बर्बाद हो गई. ऐसे में किसानों को दोबारा धान की बुवाई करनी पड़ी. इससे धान की फसल भी देरी से तैयार हो रही है.
पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के सामुदायिक चिकित्सा विभाग में पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रोफेसर डॉ. रवीन्द्र खैवाल का कहना है कि धान की कटाई में देरी से धान की पराली जलाने की अवधि और बढ़ जाएगी. वहीं, फसल की कटाई में देरी की वजह से पंजाब सरकार भी धान की खरीद 15 दिनों तक बढ़ा सकती है. आम तौर पर धान की खरीद 30 नवंबर तक चलती है. लेकिन, इस बार पंजाब में धान की एक-चौथाई फसल की कटाई अभी बाकी है.
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विशेषज्ञों का कहना है कि दिवाली के बाद पराली जलाने के मामलों में कमी आने की उम्मीद है. सामुदायिक चिकित्सा विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ से उपलब्ध एक दशक पुराना डेटा भी संकेत देता है कि 15 नवंबर के बाद मामलों में हमेशा गिरावट आई है. ऐसे में पिछले 10 साल पुरानी डेटा रिपोर्ट से पता चलता है कि हर साल 15 नवंबर के बाद खेतों में आग लगने के मामलों में गिरावट आती है. लेकिन यह साल असामान्य था. मानसून की वापसी देर से हुई और बाढ़ ने भी तबाही मचाई. ऐसे में बाढ़ग्रस्त इलाकों में किसानों को फिर से धान की रोपाई की. यही वजह है कि पिछले सप्ताह के दौरान पराली जलाने के मामले बढ़ गए थे, क्योंकि धान की फसल अपने चरम पर थी.
साल 2012 में पराली जलाने के कुल 80000 मामले सामने आए थे, लेकिन अगले साल 2013 में इसमें गिरावट दर्ज की गई. फिर, साल 2019 में तेजी से पराली जलाने के माले में गिरावट दर्ज की गई. डॉ. खैवाल की माने तो पिछले 10 सालों के आंकड़ों से साफ दिख रहा है कि साल दर साल पराली जलाने के मामले में गिरावट आ रही है.
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