लंबे समय तक लोगों को यही जानकारी थी कि सेब की बागवानी सिर्फ ठंडे और बर्फीले इलाकों में ही होती है. लेकिन अब यह पुरानी बात होती जा रही है और मैदानी और गर्म इलाकों में भी सेब की कई किस्मों की बागवानी का चलन बढ़ रहा है. पहले मैदानी और गर्म क्षेत्रों में बागवानी के लिए सेब की कई किस्मों का प्रचार-प्रसार और क्षेत्र विस्तार नहीं हो सका था, क्याेंकि इन प्रजातियों के मैदानी क्षेत्रों में मूल्याकंन के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे. आज हम आपको मैदानी और गर्म क्षेत्र की जलवायु में सेब की बागवानी के लिए उपयुक्त कई किस्मों की जानकारी देने जा रहे हैं.
आईसीएआर से जुड़े वैज्ञानिकों- पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह, दुष्यंत मिश्र और सुनील कुमार ने कम ठंड में उगने वाली किस्मों के नाम सुझाए हैं. इन किस्मों को 4 साल की स्टडी से मिले अनुभव के बाद साझा किया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सेब की अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन, एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, वेबर्ली हिल्स, पार्लिन्स ब्यूटी, ट्रॉपिकल ब्यूटी, पेटेगिल, तम्मा आदि जैसे वैरायटी ज्यादा तापमान में भी पनपने में सक्षम हैं.
सेब की अन्ना किस्म दोहरी उद्देश्य के लिए बनाई गई है, जो गर्म जलवायु में अच्छी तरह से पनपती है और बहुत जल्दी पककर तैयार होती है. वहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में इसे उगाने के लिए फूल और फल आने के लिए कम से कम 450-500 घंटों की कूलिंग यूनिट्स की जरूरत होती है. इस किस्म के फल जून माह में पक जाते हैं. फल पकने पर रंग का विकास पीली सतह पर लाल आभा के साथ होता है. फल देखने में गोल्डन डिलीशियस जैसे लगते हैं.
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अन्ना सेब जल्दी और ज्यादा फल देने वाली किस्म है. जून माह में सामान्य तापमान पर लगभग 7 दिनों तक इनका भण्डारण किया जा सकता है. वर्गीकरण के अनुसार अन्ना सेब एक स्वयं बंध्य (सेल्फ स्टेराइल) प्रजाति है. अध्ययन के तीसरे साल के दौरान परागणदाता किस्म डॉर्सेट गोल्डन के पौधे के पुष्पण के कारण अन्ना के वृक्षों पर फलन अधिक पाया गया. इसका मतलब यह है कि अन्ना सेब की बागवानी करते समय परागण दाता प्रजाति का प्रावधान करना जरूरी रहता है.
डॉर्सेट गोल्डन सेब की गोल्डन डिलीशियस जैसी प्रजाति है. यह गर्म क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है, जहां सर्दी के मौसम में इसे 250-300 घंटों की कूलिंग यूनिट मिल सकें. अन्ना किस्म की सफल बागवानी में अगर उचित दूरियों पर 20 प्रतिशत पौधे डॉर्सेट गोल्डन प्रजाति के लगाए जाएं, जिससे पूरे बाग में उनके द्वारा उत्पन्न परागकण उपलब्ध हो सकें तो अच्छे परिणाम मिलते हैं. संस्थान में अध्ययन के लिए माइकल के पौधे भी लगाए गए हैं, लेकिन उनसे अभी तक कोई आशाजनक परिणाम नहीं मिले हैं.