श्री अन्न को उपभोक्ताओं की जिंदगी का हिस्सा बनाने और उनके डेली डाइट में शामिल करने के लिए डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) ने खास पहल की है. संस्था ने आदिवासी और हाशिए पर रहने वाली महिला किसानों द्वारा जैविक रूप से खेती किए जाने वाले बाजरे से बने प्रोडक्ट्स को लोगों तक पहुंचाने के लिए राज्य भर के ग्रामीण क्षेत्रों में संगम दुकानम की स्थापना की है. इन दुकानों में मिलेट्स के अलग-अलग प्रोडक्ट्स उपलब्ध होंगे. रागुलु (फिंगर मिलेट्स), पाचा जोनालू (हरा ज्वार), अरीकेलु (कोदो), उदालू (बार्नयार्ड मिलेट्स), यव्वा राव्वा (जौ), साथ ही प्राकृतिक गुड़ और कुसुम तेल भी उपलब्ध होंगे. इन दुकानों का लक्ष्य मोटे अनाज से अलग-अलग प्रोडक्ट्स तैयार करना और उत्पादों को उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुंचाना है.
हाल ही में, गंगवार, रायकोड, शैकापुर और जहीराबाद में दत्तगिरी कॉलोनी में कई संगम दुकान खोली गई हैं और आयोजकों ने आने वाले दिनों में 10 और स्टोर खोलने की योजना बनाई है.
रेजिनटाला की एक किसान कमलम्मा ने बताया कि डीडीएस के सदस्यों के रूप में, हमने विभिन्न खाद्य फसलों की खेती करने का फैसला किया है, जिसमें सज्जलु (पर्ल मिलेट्स), कोर्रालू (फॉक्सटेल बाजरा) और समालु (कुटकी) शामिल हैं. वहीं उच्च गुणवत्ता वाली पैदावार पैदा करने के बावजूद, हमें मोटे अनाज में अपने उत्पादों के लिए सही कीमतें पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा और हमारे जैविक मोटे अनाज में कीटनाशकों के मिश्रण का खतरा था. वह कहती हैं, इन चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने अपने उत्पादों के लिए अपना खुद का मोटे अनाज स्थापित करने का फैसला किया.
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कमलम्मा का कहना है कि उन्होंने सदस्यों के साथ कई बैठकें की और परिवहन और अन्य आवश्यकताओं के लिए एक बाजार समूह बनाने के लिए प्रत्येक को 200 रुपये का योगदान देने का फैसला किया. उन्होंने कहा, हमने लेन-देन और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को संभालने के लिए एक अध्यक्ष भी चुना है. जबकि समुदाय के बुजुर्ग मोटा अनाज खाने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं, वहीं इसको लेकर युवा पीढ़ी के बीच जागरूकता की कमी है. बच्चों को इसके पोषण संबंधी लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिए, सदस्य मोटे अनाज से बनने वाली रोटी, उपमा और खिचड़ी के लिए रेसिपी टेक्स्ट तैयार करते हैं.
वहीं कमलम्मा का कहना है कि हाल के दिनों में मोटे अनाज के स्वास्थ्य लाभों के बारे में बढ़ती चर्चा के कारण इसकी मांग काफी बढ़ गई है. उदाहरण के लिए, कोरालू (फॉक्सटेल मिलेट्स) की कीमत, जो कुछ साल पहले लगभग 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम हुआ करती थी, अब बढ़कर 100 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है.
उन्होंने साझा करते हुए बताया कि हम पीढ़ियों से मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. लेकिन धीरे-धीरे इस प्रथा को छोड़ दिया. हालांकि, पिछले पांच वर्षों में हमने इसे फिर से शुरू किया है. उन्होंने बताया कि मेरी दो एकड़ ज़मीन पर, हम मोटे अनाज की लगभग 30-40 किस्में उगाते हैं. हम अपनी घरेलू जरूरतों के लिए एक हिस्सा आरक्षित रखते हैं और शेष का उपयोग पशुधन के लिए करते हैं. वहीं उन्होंने बताया कि उन्हें नियमित बाजार की तुलना में डीडीएस पर उपज के लिए 10 प्रतिशत अधिक मिलता है.