जलवायु अनुकूल खेती से किसान बनेंगे धनवान, ढाई गुना तक बढ़ सकती है आमदनी

जलवायु अनुकूल खेती से किसान बनेंगे धनवान, ढाई गुना तक बढ़ सकती है आमदनी

डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु अनुकूल खेती पर शोध किया गया है. जहां किसानों की आमदनी में ढाई गुना से अधिक वृद्धि देखी गई है. वहीं इस शोध में यह भी जानकारी हासिल हुई है कि किसान धान की मेंड़ पर अरहर की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं. पूसा विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र द्वारा ग्यारह जिलों के लगभग साठ गांवों में शोध किया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर.

जलवायु अनुकूल खेती से किसान बनेंगे धनवान, आमदनी में ढाई गुना से अधिक की वृद्धि जलवायु अनुकूल खेती से किसान बनेंगे धनवान, आमदनी में ढाई गुना से अधिक की वृद्धि
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • PATNA,
  • May 28, 2024,
  • Updated May 28, 2024, 6:48 PM IST

पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में हो रहे बदलाव ने खेती और किसानी के लिए नई चुनौती पैदा कर दी है. बारिश और ठंड के घटते दिनों के बीच बढ़ रहे तापमान ने खेती की लागत को बढ़ा दिया है. वहीं मौसम के बदले रूप का आकलन कर कृषि वैज्ञानिक जलवायु अनुकूल खेती करने का सुझाव किसानों को दे रहे हैं. इसको लेकर आए दिन शोध भी किया जा रहा है. जलवायु अनुकूल खेती को लेकर कुछ ऐसा ही सफल शोध डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर द्वारा किया गया है. यहां  शोध में पाया गया है कि जलवायु अनुकूल खेती से किसानों की आमदनी में ढाई गुना से अधिक वृद्धि हुई है. इसके साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में भी काफी सुधार आया है. फसल पर अत्यधिक तापमान और बेमौसम बारिश, तूफान का असर भी कम देखने को मिला है. 

जलवायु अनुकूल खेती पर जोर

डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के कुलपति डॉ. पी.एस. पांडेय का कहना है कि जलवायु अनुकूल खेती को लेकर हुए उच्च शोध में सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर भी जानकारी इकट्ठा की गई है. जलवायु अनुकूल खेती से किसानों की आमदनी में 275 परसेंट तक की वृद्धि देखी गई है. वहीं किसान अपनी अधिक आय का 30 परसेंट शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं.

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11 जिलों में रिसर्च के प्रमुख निष्कर्ष

केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर में जलवायु परिवर्तन पर करीब ग्यारह जिलों के लगभग साठ गांवों में शोध किया जा रहा है. जहां बदलते दौर के बीच जलवायु अनुकूल खेती में मशीन, तकनीक सहित मौसम आधारित सिंचाई को लेकर मुख्य जानकारी हासिल हुई है. यह जानकारी कृषि के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने में मददगार साबित होगी. जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ रत्नेश कुमार ने बताया कि शोध के दौरान यह पाता चला है कि जीरो टिलेज विधि से गेहूं की बुवाई करने पर जड़ों को काफी मजबूती मिलती है. ऐसा देखा गया है कि गेहूं की जड़ें मजबूत नहीं होने पर फसल तेज हवा या बारिश के दौरान गिर जाती है. ऐसी स्थिति में लगभग 90 प्रतिशत तक कम गेहूं का उत्पादन होता है. इन सबसे बचने के लिए जीरो टिलेज विधि से बुवाई करना किसानों के लिए फायदेमंद  है.  

जीरो टिलेज विधि से गेहूं की बुवाई

आगे उन्होंने बताया कि मौसम की जानकारी के अनुसार फसलों की सिंचाई करने पर किसानों को लागत में 60 परसेंट तक की कमी आई है. वहीं मूंग की फसल को जलवायु अनुकूल तरीके से करने पर सालाना 30-32 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी किसान कर रहे हैं. साथ ही लीफ कलर चार्ट के जरिये पत्ते के रंग से मिलान कर खाद का छिड़काव करने से किसानों को लागत में 20-30 परसेंट तक की कमी हुई है. इसका परिणाम यह रहा है कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है. 

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धान के साथ अरहर की करें खेती 

वैसे तो यह देखने को मिलता है कि धान के साथ कोई दूसरी फसल नहीं लगाई जाती है. लेकिन केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के वैज्ञानिक डॉ एस पी लाल ने बताया कि शोध के दौरान यह पाया गया कि जलवायु अनुकूल खेती करने वाले किसानों द्वारा धान की फसल के साथ मेंड़ पर अरहर का पौधा लगाया जा सकता है. इसका फायदा यह हुआ कि धान को तेज हवा से सुरक्षा मिली. इसके साथ ही मिट्टी में नाइट्रोजन की गुणवत्ता भी अच्छी हुई. वहीं करीब 30 प्रतिशत तक आमदनी भी बढ़ी और घरेलू दाल की जरूरत भी पूरी हो गई.  

 

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