
रबी सीजन में सरसों की खेती किसानों के लिए कम लागत और बेहतर मुनाफे वाली फसल मानी जाती है. खास बात यह है कि अगर किसी कारणवश बुवाई में देरी हो जाए, तब भी कुछ पछेती किस्में ऐसी हैं जो अच्छी पैदावार दे सकती हैं. उत्तर भारत सहित कई राज्यों में किसान इन किस्मों की मदद से देर से बोई गई फसल से भी अच्छा लाभ कमा रहे हैं. पछेती किस्में उन किसानों के लिए वरदान साबित होती हैं, जिनकी गेहूं या धान की कटाई देर से होती है.
अगर किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और बुवाई के समय को ध्यान में रखकर पछेती किस्मों का चयन करते हैं, तो देर से बोई गई सरसों भी कमाई का मजबूत जरिया बन सकती है. सही किस्म, बेहतर देखभाल और समय पर प्रबंधन से सरसों की खेती में जोखिम कम और मुनाफा ज्यादा होता है. पछेती किस्मों की अवधि अपेक्षाकृत कम होती है और ये ठंडे मौसम में भी अच्छी बढ़वार कर लेती हैं. साथ ही इन किस्मों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है, जिससे कीटनाशकों पर खर्च कम आता है. एक नजर डालिए सरसों की ऐसी ही 4 मुनाफे वाली किस्मों पर.
पूसा बोल्ड सरसों की एक लोकप्रिय पछेती किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है. यह किस्म 135 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसके दाने मोटे होते हैं और तेल की मात्रा भी अच्छी रहती है. अनुकूल परिस्थितियों में इससे 18 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है. यह किस्म झुलसा और सफेद रतुआ जैसे रोगों के प्रति काफी हद तक सहनशील मानी जाती है.
वरुणा सरसों की पुरानी लेकिन भरोसेमंद किस्म है. पछेती बुवाई में भी यह स्थिर पैदावार देती है. इसकी फसल 130 से 135 दिनों में तैयार हो जाती है. बीजों में तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत तक होती है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई हिस्सों में किसान इस किस्म को बड़े पैमाने पर अपनाते हैं.
आरएच 749 पछेती बुवाई के लिए उपयुक्त उन्नत किस्म है. यह किस्म खासतौर पर उत्तर पश्चिमी भारत की जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसकी फसल लगभग 140 दिनों में पक जाती है. सही प्रबंधन के साथ 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है. यह किस्म गिरने की समस्या से भी काफी हद तक सुरक्षित रहती है.
पूसा जय किसान एक उन्नत पछेती किस्म है, जिसे अधिक उपज के लिए जाना जाता है. इसकी फसल अवधि लगभग 135 दिन होती है. इस किस्म के पौधे मजबूत होते हैं और फलियां अधिक लगती हैं. तेल की मात्रा भी अच्छी होने के कारण बाजार में इसके दाम बेहतर मिलते हैं. यह किस्म सीमित सिंचाई वाली परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन करती है.
पछेती बुवाई करते समय बीज की मात्रा थोड़ी बढ़ा देनी चाहिए, ताकि पौधों की संख्या संतुलित बनी रहे. खेत की अच्छी तैयारी और समय पर सिंचाई से पैदावार में बढ़ोतरी होती है. सरसों की फसल में शुरूआती अवस्था में खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी होता है. इसके अलावा संतुलित उर्वरक प्रबंधन और समय पर कीट नियंत्रण से मुनाफा और बढ़ाया जा सकता है.
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