
गेहूं की फसल में जिंक (Zinc) बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पौधे की शुरुआती बढ़वार, जड़ों के विकास, कल्ले निकलने (tillering) और दानों को मोटा और चमकदार बनाने के लिए जरूरी है. जिंक दानों में कार्बोहाइड्रेट (starch) की मात्रा बढ़ाता है, जिससे फसल स्वस्थ रहती है, पीलापन दूर होता है, और पैदावार बढ़ती है. यह पोषक तत्वों के अवशोषण और एंजाइमों के निर्माण के लिए भी जरूरी है, जो फसल के अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है.
जिंक की कमी से पत्तियां पीली पड़ती हैं, बढ़वार रुक जाती है और उपज में 20-30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है, जिससे फसल की क्वालिटी और पैदावार दोनों घट जाती हैं. इसे देखते हुए किसान को गेहूं की खेती में सबसे अधिक जिंक का ध्यान रखना चाहिए. जिंक की कमी के लक्षणों पर नजर रखते हुए इसकी भरपाई करने पर फोकस करना चाहिए.
जिंक जड़ों को मजबूत करता है और पौधे में अधिक कल्ले (जपससमते) निकालने में मदद करता है, जिससे फसल घनी होती है.
यह क्लोरोफिल (chlorophyll) बनाने में मदद करता है, जिससे पत्तियों में गहरा हरापन आता है और पौधे स्वस्थ दिखते हैं.
जिंक दानों को भरने और उनकी क्वालिटी (चमक, वजन) सुधारने में मदद करता है, जिससे पैदावार बढ़ती है.
बुवाई के समय मिट्टी में जिंक मिलाना एक प्रभावी उपाय है. बुवाई के समय जिंक सल्फेट को मिट्टी में मिलाने से अंकुरण बहुत अच्छा होता है.
खेत में पहले पानी पर जब कल्ले निकलने शुरू हों (लगभग 25-30 दिन पर), यूरिया के साथ जिंक सल्फेट का प्रयोग कर सकते हैं.
जिंक सल्फेट (33 प्रतिशत) को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या चिलेटेड जिंक (Chelated Zinc) को 1-2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव भी कर सकते हैं.
जिंक की सही मात्रा और समय पर उपयोग करके आप अपनी गेहूं की फसल की उपज और क्वालिटी में काफी सुधार कर सकते हैं.
संक्षेप में, जिंक गेहूं की फसल के लिए एक सूक्ष्म पोषक तत्त्व (micronutrient) है जो फसल के हर चरण (जड़ से दाना बनने तक) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे बेहतर क्वालिटी और अधिक पैदावार मिलती है.