
हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के उद्यानिकी और वाणिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने आड़ू की खेती के लिए समर प्रूनिंग की तकनीक को विकसित किया है. साल 2016 से इस तकनीक को विकसित करने का काम महाविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ और शोधार्थियों ने शुरू किया था. इस शोध के अब सार्थक नतीजे सामने आए हैं. इस तकनीक को अपनाकर आड़ू की पैदावार में इजाफा हुआ है, जबकि पौधों की नियंत्रित ग्रोथ के लिए भी यह बेहद कारगर साबित हुई है. महाविद्यालय के गार्डन में ही एक आड़ू के बगीचे में उच्च घनत्व में पौधे तैयार किए गए हैं. इन पौधों की पिछले छह साल से साल में दो दफा प्रूनिंग की जा रही है.
आमतौर पर बागबान आडू के पेड़ों की साल में एक दफा ही सर्दियों के दौरान प्रूनिंग अथवा काट छांट करते हैं. लेकिन, साल में आड़ू के पौधे की सिर्फ सर्दियों में प्रूनिंग करने पर बागवानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. एक तरफ पौधे अनियंत्रित रूप से बढ़ जाते थे और फलों का आकार भी कम होता था. वहीं इसके पैदावार पर भी विपरीत असर देखने को मिलता था.
इस तकनीक के मुताबिक मई महीने में फसल लेने के बाद किसान और बागवान, समर प्रूनिंग को अमल में ला सकते हैं. इस तकनीक को अपनाने से पौधे के अतिरिक्त विरोध नहीं होती है और जो पोषक तत्व बर्बाद हो जाते हैं, उसमें भी रोक लगती है. पेड़ में मौजूद इन पोषक तत्वों के वजह से अगले साल फल का साइज भी बेहतर होता है और पैदावार ने भी खासी बढ़ोतरी होती है. इस तकनीक को अपनाकर हिमाचल के साथ ही देश भर में बागवान करने वाले किसान लाभ उठा रहे हैं.
उद्यानिकी और वाणिकी महाविद्यालय नेरी के डीन सोमदत शर्मा ने कहा कि आड़ू की खेती महाविद्यालय परिसर में 2016 में शुरू की गई थी. आमतौर पर इस फल के पेड़ की प्रूनिंग सर्दियों में बागवान करते हैं. देशभर में इसकी खेती को लेकर यही तकनीक अब तक अपनाई जा रही थी लेकिन महाविद्यालय परिसर में साल 2016 से शुरू किए गए प्रयोग के मुताबिक साल में दो दफा प्रूनिंग के इस काम को शुरू किया गया. उन्होंने कहा कि फल विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों और विशेषज्ञों के द्वारा यह काम कई साल तक किया गया.
वहीं 15 जून तक इस प्रूनिंग के काम को पूरा कर लिया जाएगा. सोमदत्त शर्मा ने कहा कि इस तकनीक को अपनाकर पैदावार में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं और फल का साइज भी बेहतर हुआ है. इतना ही नहीं, अगले साल यह पौधा जल्दी तैयार होगा और फल की पैदावार भी बेहतर होगी.
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प्रोफेसर सोमदत्त शर्मा का कहना है कि देशभर में इस तकनीक को अब अपनाया जा रहा है. संस्थान में देश के कई राज्यों के किसानों और बागवानों ने पहुंचकर इस तकनीक की बारीकी को सीखा है. उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों के अलावा बांग्लादेश से भी एक बागवान उच्च घनत्व की इस खेती को सीखने के लिए महाविद्यालय में पहुंचा. लगभग सात दिन तक बागवान को खेती की ये बारीकियां सिखाई गईं. सहारनपुर में इसकी खेती अधिक की जाती है और यहां पर भी अब बागवान इस तकनीक को अपना रहे हैं.
उद्यानिकी और वाणिकी महाविद्यालय नेरी के फल विज्ञान विभाग के फल विशेषज्ञ अजय बनिहाल का कहना है कि मई महीने में आड़ू की तुड़ाई पूरी हो जाती है. इसके बाद अगले साल जनवरी और फरवरी महीने में फ्लावरिंग की सेटिंग होती है. वहीं लगभग आठ महीने के अंतराल में आमतौर पर सर्दियों में ही इन पेड़ों की प्रूनिंग की जाती थी. प्रूनिंग इस अवधारणा को बदलते हुए समर प्रूनिंग की तकनीक को संस्थान में विकसित किया है.(अशोक राणा की रिपोर्ट)