काजू की विदेशी मांग में गिरावट के कारण मार्च 2023 के समाप्त होने तक यानी वित्त वर्ष के समाप्ति तक भारत के काजू निर्यात में लगभग 21 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पिछले वर्ष के 75,450 टन की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 में शिपमेंट घटकर 59,581 टन हो गई है. निर्यातक शिपमेंट में गिरावट का श्रेय वैश्विक मंदी को मान रहे हैं, जिसने पूरे बाजारों में काजू की खपत को प्रभावित किया है. वहीं अगर रुपये के मूल्य के संदर्भ में बात की जाए तो पिछले वर्ष के 3,377.40 करोड़ रुपये की तुलना में 2,868.72 करोड़ रुपये पर काजू कर्नेल शिपमेंट में गिरावट हुई है. जो लगभग 15 प्रतिशत थी, हालांकि काजू नटशेल लिक्विड का निर्यात 4,944 टन से बढ़कर 17,249 टन हो गया है.
नटकिंग ब्रांड के मालिक बीटा ग्रुप के चेयरमैन जे राजमोहन पिल्लई ने बिजनेसलाइन से बात करते हुए बताया कि चालू वित्त वर्ष में निर्यात दो दशक के निचले स्तर पर आ सकता है क्योंकि विदेशी बाजारों में कीमतों में गिरावट के कारण व्यापारियों ने शिपमेंट पर धीमी गति से काम करना जारी रखा है.
पिल्लई ने कहा कि हम विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धी के मामले में कमतर हो गए हैं और हम घरेलू बाजार पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. वहीं काजू नटशेल लिक्विड निर्यात में वृद्धि पर, जापान से बड़ी मांग है क्योंकि इसे मुख्य रूप से वार्निश, पेंट आदि के उत्पादन के लिए औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है और साथ ही उत्पादन न्यूनतम है.
काजू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष आरके भूदेस ने वैश्विक बाजार में भारतीय काजू के कमजोर प्रदर्शन के लिए कई पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मेलों में वाणिज्य मंत्रालय द्वारा निर्यात प्रोत्साहन गतिविधियों की कमी, वियतनाम से तैयार गुठली का अनैतिक आयात और अफ्रीकी देशों, और सरकार द्वारा निर्यात के लिए कई प्रोत्साहन योजनाओं को रोकना शामिल है.
ये भी पढ़ें:- Wheat Seed: गेहूं का बीज इस साल घर पर ही करें तैयार! ऐसा क्यों कह रहे हैं कृषि वैज्ञानिक
उदाहरण के लिए, भूडेस ने कहा कि सीईपीसीआई ने फरवरी में दुबई में गल्फ फूड शो में अपने स्वयं के फंड से भाग लिया था, क्योंकि पश्चिम एशिया भारतीय काजू के लिए एक प्रमुख लक्ष्य है.
भारत को काजू उत्पादन की गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रीमियम कीमत मिलती थी. अब एसईजेड, ईओयू में तैयार काजू के बढ़ते आयात और अपेक्षाकृत कम कीमतों पर भारतीय काजू के ब्रांड के तहत फिर से निर्यात किए जाने के साथ, कम गुणवत्ता और कम कीमतों पर उपलब्धता के कारण घरेलू रूप से उत्पादित काजू के लिए बाजार में गिरावट आई है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा वित्तीय सहायता बंद करने से प्रोसेसिंग कारखानों का मशीनीकरण प्रभावित हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में उच्च प्रोसेसिंग वाली लागत आई है, जिससे उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी से बाहर हो गए हैं.
ये भी पढ़ें:-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today