आज जब जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी देश के सामने खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण भोजन की चुनौती पेश कर रही है, कृषि विशेषज्ञ ऐसी फसलों पर जोर दे रहे हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी बेहतर उत्पादन दे सकें. इसी कड़ी में 'किनोवा' एक ऐसी चमत्कारी फसल के रूप में उभरा है, जिसे 'सुपर फूड' या 'सुपर ग्रेन' का दर्जा प्राप्त है. कम लागत, न्यूनतम पानी की आवश्यकता और बंपर मुनाफे की क्षमता के कारण यह भारतीय किसानों के लिए एक बेहतरीन वैकल्पिक फसल बन सकती है. किनोवा, जिसे 'मदर ग्रेन' भी कहा जाता है, वास्तव में चौलाई (रामदाना) परिवार का सदस्य है. इसके महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने वर्ष 2013 को "अंतरराष्ट्रीय किनोवा वर्ष" घोषित किया था, ताकि दुनियाभर के किसान इसके महत्व को समझें. यह दिखने में राई के दाने जैसा छोटा, हल्का गेहूंए रंग का होता है और इसका स्वाद हल्का कुरकुरा और नटी होता है. इसके पोषक गुणों की सूची इतनी लंबी है कि इसे भविष्य का अनाज कहना गलत नहीं होगा.
किनोवा को सुपरफूड कहे जाने का सबसे बड़ा कारण इसमें मौजूद पोषक तत्वों का भंडार है. इसमें गाय के दूध और अंडे से भी अधिक आयरन होता है. यह प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो मांसपेशियों के विकास के लिए आवश्यक है. इसके अलावा, इसमें मैगनीज, फास्फोरस, मैग्नेशियम, कॉपर, जिंक, पोटेशियम और फोलेट जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं. यह विटामिन B1, B2, B6 का भी अच्छा स्रोत है. इसमें मौजूद फाइबर पाचन तंत्र को मजबूत रखता है, जबकि ओमेगा-3 फैटी एसिड हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है. नियमित सेवन से कैंसर, हृदय रोग और सांस से जुड़ी बीमारियों के जोखिम को कम करने में भी मदद मिलती है.
रबी सीजन में उगाई जाने वाली किनोवा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी खेती के लिए किसी विशेष भूमि की जरूरत नहीं होती. इसे बंजर, पथरीली और मैदानी, सभी तरह की ज़मीनों पर उगाया जा सकता है, बस खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. खेत तैयार करने के लिए पहले गहरी जुताई करें और फिर 10-12 गाड़ी गोबर की जैविक खाद डालकर कल्टीवेटर से मिट्टी में मिला दें. पलेवा करने के बाद जब खेत की ऊपरी सतह सूख जाए, तो रोटावेटर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. अंत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें ताकि पानी न भरे. रासायनिक खाद के तौर पर प्रति हेक्टेयर एक बोरी डी.ए.पी. का इस्तेमाल किया जा सकता है.
किनोवा की फसल किसानों के लिए इसलिए भी वरदान है क्योंकि इसे बहुत कम पानी की जरूरत होती है. बुवाई से लेकर कटाई तक केवल 3 से 4 सिंचाई पर्याप्त होती है. इसका बीज बहुत छोटा होता है, इसलिए प्रति बीघा केवल 400 से 600 ग्राम बीज ही लगता है. बुवाई कतारों में या छिड़काव विधि से की जा सकती है. जब पौधे 5-6 इंच के हो जाएं, तो निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें. इस फसल में कीटों और रोगों से लड़ने की अद्भुत क्षमता होती है और यह पाले व सूखे की मार भी आसानी से झेल लेती है, जिससे किसानों का खर्च बचता है.
किनोवा की फसल मात्र 90 से 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. एक अच्छी फसल के पौधे 4 से 6 फीट ऊंचे होते हैं. इसे सरसों की तरह आसानी से थ्रेसर से निकाला जा सकता है. एक बीघे के खेत से किसान आसानी से 5 से 8 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में किनोवा की कीमत ₹500 से ₹1000 प्रति किलोग्राम तक है. इस गणित से किसान कम समय में ही लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं, जबकि लागत बहुत कम आती है. किनोवा से दलिया, आटा, लड्डू, खीर, बिस्किट और पास्ता जैसे कई उत्पाद बनाकर बाजार में बेचे जा सकते हैं.