पंजाब में धान की कटाई शुरू हो गई है. इसके साथ ही किसानों ने गेहूं की बुवाई करने के लिए खेतों को तैयार करना शुरू कर दिया है. ऐसे में आने वाले दिनों में खेतों में आग लगाने की संख्या में बढ़ोतरी होने की बात कही जा रही है. इससे राज्य की प्रदूषण संबंधी समस्याएं और बढ़ सकती हैं. ऐसे पंजाब में गेहूं की बुवाई के लिए आदर्श समय 1 से 15 नवंबर के बीच है. विशेषज्ञों के अनुसार, धान की कटाई अक्टूबर के मध्य तक हो जानी चाहिए, ताकि धान के अवशेषों को मिट्टी में प्राकृतिक रूप से सड़ने के लिए 15-20 दिन का समय मिल सके.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, धान की कटाई में देरी से किसानों के पास समय की कमी हो जाती है, जिससे वे घबरा जाते हैं. इसके चलते वे गेहूं की बुवाई करने के लिए पराली को जलाने लगते हैं. इससे पंजाब सहित दिल्ली- एनसीआर में भी प्रदूषण बढ़ जाता है. हालांकि, पराली से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र के लिए भी सिर दर्द बना हुआ है. ऐसे अब तक, राज्य में खेतों में आग लगने के 123 मामले सामने आए हैं, जो इस मौसम में सबसे अधिक है. इससे वायु गुणवत्ता और पर्यावरण क्षरण के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं.
ये भी पढ़ें- हरियाणा में भेड़-बकरियों में फैल सकती है नई गंभीर बीमारी, पशुपालन विभाग ने जारी की एडवाइजरी
पूर्व आईएएस अधिकारी और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कहन सिंह पन्नू ने कहा कि पीआर-126 जैसी कम अवधि वाली किस्में, जो पकने में लगभग 120 दिन लेती हैं, अगर समय पर कटाई नहीं की जाती हैं, तो खतरे में हैं. आने वाला सप्ताह महत्वपूर्ण है और अगर खड़ी फसल की जल्द ही कटाई नहीं की जाती है, तो दाने गिरने लगेंगे, जिससे फसल की पैदावार प्रभावित होगी. ऐसे में पन्नू ने सरकार द्वारा मंडियों में खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की जरूरत पर भी जोर दिया, ताकि किसान अपनी कटी हुई फसल को तेजी से बेच सकें, जिससे वे अगले बुवाई चक्र की तैयारी कर सकें. खास बात यह है कि पन्नू ने रिटायरमेंट के बाद खेती करना शुरू कर दिया है.
वहीं, पंजाब बीज प्रमाणन प्राधिकरण के पूर्व निदेशक डॉ. बलदेव सिंह नौरत ने भी इसी तरह की चिंता जताई. उन्होंने दिवाली के आसपास या नवंबर के पहले सप्ताह में खेतों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि की भविष्यवाणी की. नौरत ने कहा कि ग्रीष्मकालीन मक्का की फसल का रकबा काफी बढ़ गया है, जो अब 1.5 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया है. अप्रैल-मई में बोई जाने वाली मक्का को भारी सिंचाई की आवश्यकता होती है और इसकी कटाई के बाद किसान अगस्त में धान की रोपाई करते हैं, जो अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में पक जाती है.
ये भी पढ़ें- अकोला में अचानक आई बारिश से किसानों को भारी नुकसान, सोयाबीन और कपास की फसलें बर्बाद
उन्होंने कहा कि कुछ किसान अपने खेतों को जल्दी से तैयार करने के प्रयास में खेतों में आग लगा देते हैं. उन्होंने कहा कि कटाई में देरी, बुवाई का समय कम होना और मक्का की बढ़ती हुई खेती के कारण अधिक किसान खेतों में आग लगाने को मजबूर हो रहे हैं.