Paddy Variety: 150 दिन में तैयार हो जाती हैं धान की ये किस्में, जानें क्या है इन किस्मों की खासियत

Paddy Variety: 150 दिन में तैयार हो जाती हैं धान की ये किस्में, जानें क्या है इन किस्मों की खासियत

भारत धान उत्पादन में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है. भारत पूरी दुनिया में धान उत्पादन में दूसरे नंबर पर आता है. भारत में धान की खेती पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों में की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं धान की उन्नत किस्मों के बारे में जिसे पक कर तैयार होने में 150 से 160 दिन का समय लगता है.

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प्राची वत्स
  • Noida,
  • Jun 22, 2023,
  • Updated Jun 22, 2023, 4:23 PM IST

भारत में धान मुख्यतः खरीफ के मौसम में बोया जाता है. देश के लाखों किसान धान की खेती करते हैं. भारत में धान की सर्वाधिक खेती पश्चिम बंगाल में की जाती है. यहां करीब 54.34 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है. यहां लगभग 146.06 लाख टन धान का उत्पादन होता है. इसके अलावा धान की खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में भी प्रमुखता से की जाती है. धान की खेती से अच्छी उपज और गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि हम सही समय के अनुसार धान कि सही किस्मों के बीज का चयन करें. ऐसे में आज हम बात करेंगे धान कि उन किस्मों के बारे में जिसके पक कर तैयार होने में 150 या उससे अधिक दिन का समय लगता है. 

बासमती-370 (Basmati-370)

बासमती-370 धान (चावल) की एक लोकप्रिय किस्म है जो अपनी सुगंधित सुगंध और लंबे, पतले दानों के लिए जानी जाती है. इसकी खेती भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से की जाती है, विशेष रूप से भारत में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों के साथ-साथ पाकिस्तान में भी. बासमती चावल को उसके अनूठे स्वाद, नाजुक बनावट और समृद्ध सुगंध के लिए अत्यधिक माना जाता है. बासमती-370 अपनी विशिष्ट सुगंध के लिए जाना जाता है, जिसे अक्सर अखरोट या पॉपकॉर्न जैसी सुगंध से तुलना किया जाता है. यह सुगंध बासमती चावल की विशिष्ट विशेषताओं में से एक है और इसे चावल की अन्य किस्मों से अलग करती है. यह किस्म लगभग 165 सेमी तक बढ़ती है. इसे तैयार होने में करीब 150 दिन लगते हैं. इस किस्म से 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज प्राप्त की जा सकती है.

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पूजा (सीआर-629-256) (Pooja CR-629-256)

धान की इस किस्म को तैयार होने में 150 दिन का समय लगता है. साथ ही यह यह कम ऊंचाई वाली (90-95 सेमी) धान की किस्म है. इसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश के उथले तराई क्षेत्रों में खेती के लिए वर्ष 1999 में जारी और अधिसूचित किया गया है. इसका दाना मध्यम पतला तथा औसत उत्पादकता 5.0 टन प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म सभी प्रमुख रोगों एवं कीटों के प्रति सहनशील है. यह किस्म देर से रोपाई के लिए उपयुक्त है और 25 सेमी तक जलभराव की स्थिति को सहन करने की क्षमता रखती है.

सरला (सीआर 260-77) Sarla (CR 260-77)

धान की किस्म "सरला (सीआर 260-77)" भारत में उगाई जाने वाली एक लोकप्रिय किस्म है. सरला (सीआर 260-77) भारत के रायपुर, छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) द्वारा विकसित एक उच्च उपज देने वाली चावल की किस्म है. सरला (सीआर 260-77) अपनी उच्च उपज क्षमता और विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए जाना जाता है. यह एक अर्ध-बौनी किस्म है जिसमें ठहरने की अच्छी क्षमता है, जिसका मतलब है कि पौधों के झुकने या गिरने का खतरा नहीं है. धान की इस किस्म को पक कर तैयार होने में 150 से 160 दिन का समय लगता है. इस किस्म को चावल में आमतौर पर पाए जाने वाले कुछ रोगों, जैसे ब्लास्ट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट, के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के साथ विकसित किया गया है. 


 

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