भारत में धान की खेती और मछली पालन, एक साथ दोहरा मुनाफा कमाने का तरीका

भारत में धान की खेती और मछली पालन, एक साथ दोहरा मुनाफा कमाने का तरीका

भारत में धान की खेती के साथ मछली पालन का चलन बढ़ रहा है. जानिए कैसे किसान एक ही खेत से दोगुनी कमाई कर रहे हैं धान-मछली एकीकृत प्रणाली से.

Paddy cultivation and fish farming togetherPaddy cultivation and fish farming together
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jul 06, 2025,
  • Updated Jul 06, 2025, 1:58 PM IST

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां धान की खेती का बहुत बड़ा हिस्सा है. खासकर ग्रामीण इलाकों में चावल मुख्य आहार है, इसलिए किसान धान की खेती को प्राथमिकता देते हैं. आजकल किसान पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर कुछ नया करने की कोशिश में हैं- और वह है धान की खेती के साथ मछली पालन. यह तरीका नया नहीं है, लेकिन अब इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है.

धान के साथ मछली पालन क्यों?

धान की खेती में खेतों में लंबे समय तक पानी भरा रहता है. ऐसे में उस पानी का पूरा उपयोग करने के लिए किसान उसमें मछली पालन भी करने लगे हैं. इससे न सिर्फ जमीन का बेहतर उपयोग होता है, बल्कि किसानों की आमदनी भी दोगुनी हो जाती है.

भारत में धान-मछली प्रणाली का इतिहास

भारत में धान और मछली पालन की यह संयुक्त प्रणाली कोई नई नहीं है. प्राचीन काल से ही किसान धान के खेतों में मछलियों को पालते आए हैं. यह तरीका छोटे किसानों के लिए खासतौर पर फायदेमंद है क्योंकि यह उन्हें अतिरिक्त आय और पोषण दोनों देता है.

धान के खेत साल में 3 से 8 महीने तक पानी से भरे रहते हैं, जो मछली पालन के लिए आदर्श स्थिति है. साथ ही, धान की फसल के बचे हुए हिस्सों को मछलियों के भोजन के रूप में उपयोग किया जा सकता है.

जलीय पौधे-मछली प्रणाली

इस प्रणाली में किसान जलीय पौधों का उपयोग मछलियों के भोजन के रूप में करते हैं.
घास कार्प जैसी मछलियां ऐसे पौधों को खाती हैं:

  • लेम्ना
  • वोल्फिया
  • स्पाइरोडेला
  • अजोला

इन पौधों में उच्च प्रोटीन और कम वसा होता है, जो मछलियों के लिए आदर्श आहार है. खासतौर पर अजोला एक जैव उर्वरक के रूप में काम करता है और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व बनाता है.

इस तरह, यह प्रणाली मछलियों को पोषण देती है और खेत की मिट्टी को भी उपजाऊ बनाती है.

मवेशी-मछली पालन प्रणाली

गांवों में गाय का गोबर परंपरागत रूप से खाद के रूप में इस्तेमाल होता है. यही गोबर मछली पालन में भी काम आता है.

  • एक गाय साल में लगभग 400-500 किलोग्राम गोबर और 3,500-4,000 लीटर मूत्र देती है.
  • यह गोबर मछलियों के लिए भोजन बनता है और पानी की गुणवत्ता सुधारता है.

5-6 गायों का समूह एक हेक्टेयर तालाब में 3000-4000 किलोग्राम मछली सालाना तैयार कर सकता है. साथ ही, इससे साल में 9000 लीटर तक दूध भी प्राप्त होता है.

इस प्रणाली से किसान मछली, दूध और खाद तीनों चीजों का लाभ उठा सकते हैं.

धान-मछली प्रणाली के फायदे

  • एक ही खेत से दो गुना आमदनी
  • पानी का बेहतर उपयोग
  • खाद की बचत और मिट्टी की उर्वरता में सुधार
  • स्वस्थ मछलियों और अच्छी गुणवत्ता के धान का उत्पादन
  • कृषि और पशुपालन के बीच संतुलन

धान और मछली पालन का यह एकीकृत तरीका छोटे और मध्यम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. यह न केवल कृषि आय को बढ़ाता है, बल्कि पारंपरिक खेती को भी आधुनिक रूप देता है. अगर किसान इस प्रणाली को सही तरीके से अपनाएं, तो वह कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

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