चुनावी सीजन में उपभोक्ताओं को खुश रखने के लिए केंद्र सरकार प्याज उत्पादक किसानों और इसकी ट्रेडिंग करने वाले व्यापारियों को दाम के मोर्चे पर एक और झटका देने की तैयारी में है. सामान्य तौर पर यह ट्रेंड देखने को मिला है कि नवंबर और दिसंबर में भी प्याज की कीमतें ज्यादा बढ़ जाती हैं. ऐसे में इन दो महीनों में दाम पर नियंत्रण के लिए केंद्र ने एक प्लान बनाया है. प्लान यह है कि नफेड और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी एनसीसीएफ के पास एक लाख मीट्रिक टन का बफर स्टॉक रोक कर रखा जाए और जब नवंबर में दाम बढ़ने शुरू हों तभी उसे मार्केट में उपलब्ध करवा दिया जाए. इससे उपभोक्ताओं को इन दोनों महीनों में भी सस्ते भाव पर प्याज मिलता रहेगा. सरकार इन दोनों सहकारी एजेंसियों को दाम घटाने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी. हालांकि, नफेड की स्थापना किसानों को लाभ देने के मकसद से की गई थी.
उपभोक्ता मामले विभाग के सचिव रोहित कुमार सिंह का कहना है कि अगर सरकार प्याज के मामले में बाजार हस्तक्षेप नहीं करती तो फिर इसका दाम 100 रुपये किलो तक पहुंच गया होता. अभी इसके दाम 25 से 35 रुपये प्रति किलो तक है. मंत्रालय का मानना है कि प्याज की उत्पादन लागत अलग-अलग राज्यों में 10 से 15 रुपये प्रति किलो तक है. उस हिसाब से दाम अभी ठीक है. किसानों को 20-25 रुपये किलो तक का दाम मिल रहा है, उन्हें घाटा नहीं हो रहा है. हमारा काम उपभोक्ताओं और किसानों दोनों का ध्यान रखना है.
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नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड (NHB) की एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि नवंबर और दिसंबर में भी प्याज का दाम बढ़ जाता है. शायद सरकार ने इसी को नजर में रखते हुए ऐसा प्लान बनाया है. नफेड और एनसीसीएफ के पास इस साल प्याज के 5 लाख टन का बफर स्टॉक है, जो अब तक का सबसे अधिक है. इन दोनों एजेंसियों ने मिलकर बफर स्टॉक के लिए 3 लाख टन प्याज खरीदा था. लेकिन जब 17 अगस्त को प्याज पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई तब सरकार ने 2410 रुपये क्विंटल पर 2 लाख टन की और खरीद करने के आदेश दे दिए. अब यही बफर स्टॉक किसानों के गले की फांस बन गया है. इस वक्त भी बफर स्टॉक का प्याज सस्ते में मंडियों में बेचा जा रहा है. जिससे दाम गिरे हुए हैं.
माह | 2014 | 2017 | 2018 | 2019 |
जनवरी | 1791.3 | 1302.2 | 3514.1 | 1374.8 |
जुलाई | 2190.0 | 1227.4 | 1883.1 | 1908.6 |
नवंबर | 1872.5 | 3172.9 | 1760.7 | 4661.2 |
दिसंबर | 1673.5 | 3532.9 | 1331.2 | 6244.8 |
Source: NHB
पिछले दो साल से किसान 1 रुपये से लेकर 9 रुपये किलो तक के ही दाम पर प्याज बेचने को मजबूर थे. लेकिन, बारिश की वजह से हुए बड़े पैमाने पर नुकसान की वजह से इसका भाव जुलाई के अंत से बढ़ना शुरू हो गया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी. पहली बार यह कदम उठाया गया. इससे एक्सपोर्ट कम हो गया है. एक्सपोर्ट कम होने से बाजार में प्याज की आवक बढ़ गई और दाम घट गया.
इसके बाद नफेड और एनसीसीएफ को दाम गिराने के काम में लगाया गया. दोनों एजेंसियां अपना बफर स्टॉक सस्ते में बेच रही हैं. इसी के खिलाफ पिछले आठ दिन से नासिक की मंडियों में व्यापारियों की हड़ताल भी चल रही है. जिसे किसानों का भी समर्थन हासिल है. जब एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई तब भी हड़ताल हुई थी. लेकिन, केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने न तो तब अपने फैसले को वापस लिया और इस बार भी 26 तारीख को मुंबई में हुई बैठक बेनतीजा रही है.
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के संस्थापक अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि अगर सरकार इसी तरह से जान बूझकर प्याज का दाम घटाएगी तो फिर किसान इसकी खेती करना बंद कर देंगे. फिर सरकार दालों और खाद्य तेलों की तरह प्याज भी आयात करेगी. तब उपभोक्ताओं को सौ-दो सौ रुपये किलो पर प्याज मिला करेगी. हमारे पास खेती के लिए दूसरे विकल्प हैं, लेकिन सरकार के पास प्याज का विकल्प नहीं है. हमारा सरकार से सवाल है कि जब दाम दो रुपये किलो रह जाता है तो वो कहां गायब हो जाती है और दाम बढ़ते ही कहां से प्रकट होकर हमारा काम बिगाड़ने आ जाती है.
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हमारे पास एक ऐसा फार्मूला है जिससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हित सध जाएंगे. प्याज का एमएसपी फिक्स कर दिया जाए. एमएसपी शब्द से दिक्कत है तो रिजर्व प्राइस या फ्लोर प्राइस तय कर दिया जाए कि कोई भी व्यापारी इतने रुपये से नीचे प्याज नहीं खरीद सकेगा. लागत और गुणवत्ता के हिसाब से न्यूनतम दाम फिक्स किया जाए. इसी तरह प्याज व्यापारियों के लिए भी तय कर दिया जाए कि वो इतने से अधिक दाम पर जनता को प्याज नहीं बेच पाएंगे. इससे एक साथ दो समस्याओं का समाधान होगा. किसानों को उनकी लागत से अधिक दाम मिलेगा और उपभोक्ताओं को महंगा प्याज नहीं खरीदना पड़ेगा.