महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संगठन ने कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) यानी मंडियों में किसानों के कथित शोषण का मुकाबला करने के लिए मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे प्रमुख शहरों में खुद प्याज बाजार शुरू कर रहा है. कोशिश यह है कि किसान सीधे उपभोक्ताओं को प्याज बेचने का काम करेंगे. संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले ने कहा कि ये बाजार दिवाली के बाद शुरू करेंगे. ये सब बाजार संगठन के नियंत्रण में होंगे. एक साथ सरकार और व्यापारियों दोनों पर निशाना साधा जाएगा. किसानों को राज्य में कहीं भी अपनी उपज बेचने की आजादी है, जिससे इन बाजारों को स्थापित करने के लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी.
दिघोले महाराष्ट्र में बड़े किसान नेता हैं, जो प्याज के मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते रहते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसान उपभोक्ताओं के लिए प्याज उगाते हैं, एपीएमसी के लिए नहीं, और वे उपज की कीमत खुद निर्धारित करेंगे. जिससे किसानों और उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की भूमिका कम हो जाएगी. एपीएमसी के लोग बिचौलिया हैं. इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों का शोषण होता है. राज्य के कई प्याज उत्पादकों ने अपनी उपज एपीएमसी और निजी मंडियों में नहीं लाने का संकल्प लिया है. हालांकि, व्यापारियों और निर्यातकों के पास इन किसानों के बाजारों से उपज खरीदने का विकल्प है.
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पहला बाज़ार पुणे में बनेगा और किसान राज्य भर में बाज़ारों की एक श्रृंखला स्थापित करने के विवरण पर चर्चा करने के लिए बैठकें कर रहे हैं. पिछले दो वर्षों में, राज्य के प्याज किसानों ने एशिया के सबसे बड़े प्याज बाजार के रूप में मान्यता प्राप्त लासलगांव सहित एपीएमसी के कामकाज पर अपना असंतोष व्यक्त किया है. किसानों का कहना है कि उन्हें मंडी में उचित दाम नहीं मिल रहा है. किसानों ने दो-दो रुपये किलो पर भी प्याज बेचा है.
लासलगांव के व्यापारियों का कहना है कि भारत में प्याज की दैनिक मांग 50,000 से 60,000 टन के बीच रहती है. फसल का मूल्य उसके बाजार में आने पर निर्भर करता है. वो इस बात का खंडन करते हैं और तर्क देते हैं कि व्यापारी प्याज स्टॉक की आपूर्ति में हेरफेर करके बाजार की कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. लासलगांव बाजार भारत में केंद्रीय प्याज व्यापार केंद्र के रूप में खड़ा है. यहीं के दाम घटने-बढ़ने से देश में प्याज के दाम तय होते हैं.
दिघोले का कहना है कि हम सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि प्याज का एमएसपी घोषित कर दिया जाए. जिससे कि हम किसानों को घाटा न हो. लेकिन सरकार इस मांग को नहीं मान रही है जिस वजह से किसानों को 2 रुपये किलो के दाम पर प्याज बेचना पड़ा. किसानों को बहुत घाटा हुआ है. अब दाम बढ़ रहा है तो सरकार उसे न्यूनतम निर्यात मूल्य 800 डॉलर प्रति टन करके कम कर रही है. इससे किसानों को नुकसान हो रहा है.
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