प्रमुख तिलहन फसल सरसों का उत्पादन इस साल नई ऊंचाई पर पहुंच सकता है. हालांकि खेती और उत्पादन में वृद्धि की रफ्तार पहले जैसी नहीं होगी. क्योंकि कम दाम की वजह से कई क्षेत्रों में सरसों की बुवाई को लेकर खास उत्साह नहीं है. इसे आप सरकारी आंकड़ों से समझ सकते हैं. फसल वर्ष 2021-22 में 91.25 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती हुई थी जो 2022-23 में बढ़कर 98.02 लाख हेक्टेयर हो गई थी. यानी एक साल में रकबा 6.77 लाख हेक्टेयर बढ़ गया था. वर्तमान फसल सीजन 2023-24 के दौरान रकबे में वृद्धि की ऐसी रफ्तार देखने को नहीं मिल रही है. क्योंकि, कई क्षेत्रों में किसानों को एमएसपी से कम दाम पर फसल बेचनी पड़ी थी, क्योंकि सरकारी खरीद न के बराबर हुई थी.
वर्तमान सीजन के दौरान 29 दिसंबर 2023 तक 97.29 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हो चुकी है. जबकि इसी अवधि में 2022 के दौरान 95.63 लाख हेक्टेयर एरिया में ही इसकी बुवाई हुई थी. यानी पिछले साल के मुकाबले 1.65 लाख हेक्टेयर एरिया ज्यादा है. हालांकि, ओवरऑल डाटा अभी आना बाकी है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरसों की खेती का एरिया बढ़ने का पूरा अनुमान है. लेकिन पहले जैसी रफ्तार नहीं होगी. हम खाद्य तेलों के मामले में बड़े आयातक हैं. ऐसे में अगर पिछले वर्ष किसानों को अच्छा दाम मिलता तो एरिया कहीं वर्तमान से बहुत ज्यादा हो चुका होता. साल 2023 में सरसों की खेती करने वाले किसानों को 2020, 2021 और 2022 की तरह दाम नहीं मिला. इसलिए कई पारंपरिक सरसों उत्पादक क्षेत्रों में इसकी खेती को लेकर नकारात्मक माहौल है.
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अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि सरसों के उत्पादन में 2019-20 और 2022-23 के बीच लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी. हालांकि, उत्पादन में वृद्धि की यह रफ्तार इस बार पहले जैसी नहीं रहने का अनुमान है. लेकिन सरकारी उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है. कृषि मंत्रालय ने फसल वर्ष 2023-24 के लिए सरसों के 131.4 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है. जबकि 2022-23 में 126.43 लाख टन उत्पादन हुआ था.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने एमएसपी पर सरसों की खरीद को लेकर 2023 में 'सरसों सत्याग्रह' शुरू किया था. उनका कहना है कि इस साल राजस्थान में सरसों की खेती का रकबा कम हो सकता है. क्योंकि किसानों को एमएसपी के मुकाबले 1000 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर सरसों बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था. अब कोई भी किसानघाटे में खेती क्यों करेगा. सरसों की खेती को लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं दिखा है. हालांकि, ठक्कर का कहना है कि खाद्य तेलों के आयातक देश की वजह से सरसों के दाम में वृद्धि की संभावना बरकरार है, इसलिए किसान इसकी खेती बहुत नहीं बढ़ा रहे हैं तो कम भी नहीं कर रहे हैं.
साल 2023 में किसानों को 5450 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी से कम दाम पर भी सरसों बेचनी पड़ी थी. यही नहीं, हरियाणा को छोड़कर किसी भी राज्य ने अपने तय कोटे के अनुसार सरकारी खरीद भी नहीं पूरी की थी. यहां तक कि सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान में भी खरीद का कोटा पूरा नहीं हुआ था. राजस्थान में एमएसपी पर मुश्किल से 4 लाख मीट्रिक टन सरसों खरीदी गई जबकि यहां राज्य सरकार को 15 लाख मीट्रिक टन की खरीद करनी चाहिए थी. यही हाल अन्य सूबों का भी रहा है. इसलिए कई छोटे राज्यों में किसान इसकी खेती से दूर हैं. जबकि राजस्थान या मध्य प्रदेश जैसे बड़े उत्पादक राज्यों में क्षेत्रफल में कोई बड़ा उछाल नहीं देखा गया. उत्तर प्रदेश एकमात्र अपवाद है जहां 22 दिसंबर तक रकबा 32 प्रतिशत बढ़ गया है.
ठक्कर का कहना है कि लद्दाख, महाराष्ट्र, मणिपुर, त्रिपुरा और कुछ अन्य राज्यों में सरसों की कोई बुवाई नहीं की गई है, हालांकि इनमें सामान्य क्षेत्रफल एक लाख हेक्टेयर भी नहीं हो सकता है. अनुकूल मौसम के चलते पिछले तीन वर्षों में जो विकास हासिल किया गया है, वह इस वर्ष हासिल करना काफी हद तक संभव है. भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के एक एक्सपर्ट ने कहा कि अब तक मौसम सरसों के लिए बहुत अनुकूल रहा है. राजस्थान सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक है. कुल सरसों उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी 48.2 प्रतिशत है.
ठक्कर का कहना है कि सरसों की पैदावार को सफेद रतुआ और अन्य बीमारियां बाधित करती हैं. अच्छी बात यह है कि अभी तक सरसों पर किसी कीट के बड़े पैमाने पर हमले के बारे में कहीं से भी ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है. अनुमान के विपरीत सरसों की खेती पर अल नीनो का प्रभाव अभी तक नहीं देखा गया है. अगले दो माह तक मौसम अनुकूल रहा तो अच्छा उत्पादन हासिल किया जा सकता है. सरसों उत्पादन में राजस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह देश का सबसे बड़ा उत्पादक है. इसलिए राज्य में किसी भी बदलाव का देश के पूरे सरसों उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ता है.
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खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के महामंत्री तरुण जैन ने कहा कि ओवरऑल रकबा अगर घटता भी है तो भी सरसों की बेहतर पैदावार और अधिक उत्पादन की उम्मीद है. क्योंकि अब तक मौसम इसके बहुत अनुकूल है. उन्होंने सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरसों की 100 प्रतिशत खरीद की मांग की है, जो किसानों को फसल से जुड़े रहने या बल्कि रकबा बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी. हालांकि, चिंता वाली बात यह है कि पारंपरिक सरसों उगाने वाले क्षेत्रों में मौजूदा कम बाजार मूल्य के कारण नकारात्मक भावना मौजूद है. किसानों ने सरसों की बजाय इसबगोल, जीरा और सौंफ जैसे मसालों की ओर रुख किया है.