मध्य प्रदेश, जो देश में मक्का और तिल का सबसे बड़ा उत्पादक है, और सोयाबीन, सूरजमुखी (नाइगर), और उड़द के उत्पादन में शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है, इस बार बारिश की वजह से कुछ मुश्किलों का सामना कर रहा है. अब तक (10 सितंबर तक) राज्य में सामान्य से 23% अधिक बारिश हो चुकी है. इस साल जून में अच्छी बारिश हुई, लेकिन जुलाई में अत्यधिक बारिश के कारण बुआई का सही समय निकल गया. किसान नेता केदार सिरोही का कहना है कि इस बार बोवनी की खिड़की लगभग बंद हो चुकी है, जिससे कई फसलें जैसे कि सोयाबीन, कपास, बाजरा और ज्वार की बुआई पिछले साल की तुलना में 5% से 17% तक कम हुई है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल मध्य प्रदेश में कुल खरीफ फसल क्षेत्र 139.87 लाख हेक्टेयर रहा, जो पिछले साल के 141.32 लाख हेक्टेयर से थोड़ा कम है. राज्य का सामान्य खरीफ फसल क्षेत्र 135.99 लाख हेक्टेयर होता है, जिसमें सोयाबीन, धान और मक्का की हिस्सेदारी लगभग 75% है.
किसानों ने कम कीमतों के कारण सोयाबीन से हटकर मक्का की ओर रुख किया है. उड़द जैसी कम अवधि की फसलें (90 दिनों में पकने वाली) भी अधिक बुआई क्षेत्र में आई हैं, क्योंकि बारिश के कारण मुख्य फसलों की बुआई में देरी हुई.
किसानों और विशेषज्ञों का मानना है कि मक्का और धान को छोड़कर अन्य ज्यादातर फसलों की पैदावार में इस साल गिरावट आ सकती है, क्योंकि मौसम की मार और देरी से बुआई का असर सीधे फसल उत्पादन पर पड़ेगा.
राष्ट्रीय स्तर पर मध्य प्रदेश की स्थिति (2024-25 खरीफ सीजन)
इस साल मध्य प्रदेश में बारिश की अनियमितता ने खरीफ फसलों की बुआई और उत्पादन पर असर डाला है. हालांकि मक्का और उड़द जैसी फसलों में सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन सोयाबीन, तिल और कपास जैसे प्रमुख फसलों में गिरावट चिंता का विषय है. किसानों को समय पर सलाह और बाजार में उचित मूल्य मिलना बेहद ज़रूरी है ताकि नुकसान की भरपाई हो सके.