बिहार की पहचान के साथ लिट्टी चोखा और मखाना ही नहीं जुड़ा है. बिहार की पहचान को देश के नक्शे में समृद्ध करने में दही-चूड़ा भी अहम भूमिका निभाता है. बिहार में लोग तीज-त्यौहार के साथ ही रोजाना ब्रेक फास्ट में दही-चूड़ा खाते हैं. हालांकि देश के अन्य कई राज्याें में ही दही-चूड़ा खाने की परंपरा है, लेकिन बिहार के चूड़े को खास बनाता है मर्चा धान... अब इस मर्चा धान को भौगौलिक पहचान यानी जीआई टैग मिलने जा रहा है. आइए जानते हैं कि बिहार के मर्चा धान की खेती बिहार में कहां होती है. इसे जीआई टैग दिलवाने की प्रक्रिया कब से चल रही है.
जीआई टैग के लिए जीआई जर्नल में मर्चा धान के बारे में जानकारी प्रकाशित की गई है, जिसमें मर्चा धान को जीआई टैग देने के बारे में जानकारियां हैं. अगर को कोई इस पर आपत्ति नहीं जताता है तो अगले महीने यानी मई में मर्चा धान को जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया पूरी होने की संभावनाएं हैं. राज्य के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि मर्चा धान को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग मिलना बिहार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. उन्हाेंने कहा कि यह सब बिहार के अब तक बने तीन कृषि रोडमैप के बदौलत ही हो पाया है.
मार्च धान को जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया ऐसी ही शुरू नहीं हुई है. इसके लिए 2 साल से प्रयास जारी थे. 2021 में सिंगसनी गांव के मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह के द्वारा जीआई टैग के लिए आवेदन दिया गया था. जिसकी बदौलत कृषि उत्पाद के क्षेत्र में पश्चिमी चंपारण की धरोहर मर्चा धान को जीआई टैग के लिस्ट में शामिल किया गया है. इससे पहले बिहार के जर्दालू आम, कतरनी धान, शाही लीची, मगही पान और मिथिला मखाना को जीआई टैग मिल चुका है.
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मर्चा धान की खेती पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा एवं मैनाटांड़,रामनगर ब्लॉक के कुछ ही गांव में बड़े पैमाने पर की खेती होती है. पश्चिमी चंपारण में करीब एक हजार एकड़ में धान की खेती होती है. वहीं करीब 500 से अधिक किसान इसकी की खेती करते हैं. यह 145 से 150 दिन की क्रॉप होती है और इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल के आसपास है.
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इस धान से बना चूड़ा पूरे राज्य एवं देश स्तर पर मशहूर है. वहीं स्थानीय स्तर पर लोग से मिर्चा ,मरचा, मरचैया के नाम से जानते हैं. वैसे जिले के कई अन्य प्रखंड में भी इसकी खेती होती है, लेकिन जिले के नरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा एवं मैनाटांड़,रामनगर ब्लॉक की जमीन इसकी खेती के लिए पूरी तरह से अनुकूल है.
जीआई टैग मिलने के बाद जिले में उत्पादित मर्चा धान से बने चूड़े की मांग विदेशों में भी होगी. इससे किसानों को ज्यादा आय मिलने लगेगी. प्रदेश के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने किसान तक से बातचीत के दौरान बताया कि आज कृषि उत्पाद के क्षेत्र में मर्चा धान को जीआई टैग मिलना बहुत बड़ी बात है. यह सब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दूरदर्शी सोच के बदौलत ही संभव हो पाया है. राज्य के तीन कृषि रोडमैप के वजह से ये संभव हुआ है. वहीं चौथा कृषि रोडमैप में सूबे के किसान अभी बहुत कुछ शुभ समाचार देंगे. डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक एवं पश्चिमी चंपारण के अधिकारियों के बदौलत ये उपलब्धि हासिल हुई है. मखाना के बाद मर्चा धान भी एक नकदी फसल है.