
उद्योगों पर डोनॉल्ड ट्रंप के टैरिफ का दबाव कम करने के लिए भारत सरकार अमेरिका से मक्का और सोयाबीन आयात करने की अनुमति दे सकती है. इस आहट से ही भारत के कृषि क्षेत्र पर संकट बढ़ने लगा है. मक्के का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी 600 रुपये नीचे आ गया है, जो किसानों की प्रति क्विंटल लागत से भी कम है. सोचिए कि अगर ट्रेड डील फाइनल हो गई और अमेरिका का मक्का भारत के बाजार में आने लगा तो इसका दाम कितना गिर जाएगा और हमारे किसानों को कितना नुकसान झेलना पड़ेगा? सिर्फ आयात की आहट से ही मक्का बाजार में हाहाकार मचा हुआ है. किसान बेचैन हैं. कहां तो उन्हें मक्के के सहारे 'उर्जादाता' बनने का ख्वाब दिखाया जा रहा था और कहां अब उन्हें घाटे में मक्का बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
इस वक्त भारत में मक्के का एमएसपी 2400 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़े बता रहे हैं कि 15 से 23 अक्टूबर के बीच इसका बाजार भाव 1823.53 रुपये रहा. भारत सरकार ने ए2+एफएल (Actual paid out cost plus imputed value of family labour) फार्मूले के आधार बताया है कि एक क्विंटल मक्का पैदा करने में किसानों को 1508 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. जबकि स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर सी-2 (Comprehensive Cost) फार्मूले के मुताबिक किसानों को सही मायने में प्रति क्विंटल मक्का पैदा करने में 1952 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. इसका मतलब यह है कि किसान ने मक्का पैदा करने पर जो खर्च किया, उसे वह भी नहीं मिल पा रहा है.
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह राज्य मध्य प्रदेश में मक्के के भाव का सबसे बुरा हाल है. राज्य में किसानों को मक्के का औसत भाव महज 1552.49 रुपये प्रति क्विंटल मिला. कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, एमपी की कुछ मंडियों में तो मक्के की कीमत गिरकर 1200 रुपये प्रति क्विंटल ही रह गई है, जो एमएसपी की आधी है. देवास की खातेगांव (Khategaon) मंडी में मात्र 1196.5 रुपये का भाव रहा. जबकि सीहोर जिले की नसरुल्लागंज मंडी में दाम 1121 ही रहा. मध्य प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है. देश के कुल मक्का उत्पादन में इसका शेयर 12.39 फीसदी है.
देश का करीब 6 फीसदी मक्का पैदा करने वाले राजस्थान में भी दाम गिरे हुए हैं. यहां पर पिछले एक सप्ताह में मक्के का भाव 1695.54 रुपये प्रति क्विंटल रहा, जो एमएसपी से करीब सात सौ रुपये कम है. यहां की नाहरगढ़ मंडी में दाम महज 1510 रुपये प्रति क्विंटल रहा. देश के सबसे बड़े मक्का उत्पादक कर्नाटक में भी दाम एमएसपी से कम ही मिल रहा है. यहां पिछले एक सप्ताह में मक्के का औसत दाम 2085.85 रुपये प्रति क्लिंटल रहा. जबकि महाराष्ट्र में औसत भाव 1763.85 रुपये रहा. ये तो रही भाव की बात. जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि अगर मक्का आयात हुआ तो भारतीय किसानों और कृषि क्षेत्र को बड़ा धक्का लगेगा. इंपोर्टिंग फूड इज इंपोर्टिंग अनएंप्लायमेंट. सरकार इस बात को ध्यान रखे.
भारत में पिछले कुछ वर्षों में मक्के का सही दाम मिलने की वजह से इसकी खेती का एरिया बढ़ रहा था. साल 2020-21 में महज 98.92 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती हो रही थी जो 2024-25 में बढ़कर 120.17 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई. इसी अवधि में उत्पादन 316.45 से बढ़कर 422.81 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया. भारतीय किसान देश की मक्का जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार खेती और उत्पादन बढ़ा रहे हैं. लेकिन अगर अमेरिका से मक्का आयात किया गया तो दाम तेजी से गिरेंगे. दाम गिरेगा तो भारत के किसान इसकी खेती घटाने में देर नहीं करेंगे. नतीजा यह होगा कि देश दलहन और तिलहन की तरह मक्के में भी 'आयात निर्भर' बन जाएगा. दुनिया के कुल मक्का उत्पादन में अमेरिका की हिस्सेदारी 35 तो भारत की महज 3 फीसदी ही है.
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