बेबी कॉर्न का स्वाद हर किसी को पसंद आता है. यही वजह है कि देश और दुनिया में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है. अब इसकी रेसिपी सिर्फ स्टार होटलों और बड़े रेस्टोरेंट तक ही सीमित नहीं रह गई है. इसकी मांग घरेलू और विदेशी बाजारों में दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है..बेबी कॉर्न पहले बड़े शहरों के होटलों में ही मिलता था, मगर अब यह छोटे शहरो में काफी लोकप्रिय हो गया है. बेबी कॉर्न आय का अवसर प्रदान कर रहा है,क्योंकि आजकल बेबी कॉर्न को भूनकर साबुत भी खाया जाता है. इसे कच्चा या पकाकर भी खाया जाता है. इसका उपयोग पास्ता, चटनी, कटलेट, क्राफ्ता, करी, मंचूरियन, रायता, सलाद, सूप, अचार, पकोड़ा, सब्जी, बिरयानी, जैम, मुरब्बा, बर्फी, हलवा, खीर आदि में किया जाने लगा है. इससे किसानों की कमाई के बेहतर अवसर पैदा हो रहे हैं. इसलिए खरीफ मौसम में 55-60 दिन में बेबी कॉर्न की खेती कर कम समय में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
बेबी कॉर्न मक्का परिवार से आता है और इसकी फसल तब काटी जाती है, जब यह अपरिपक्व (Immature) होता है. बेबी कॉर्न की फसल काटने का उचित समय क्या हो, किसान को इसका ज्ञान होना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इन्हें तब काटा जाता है, जब ये आकार में छोटे होते हैं और इन्हें हाथ से चुना जाता है.
आज दुनिया में थाईलैंड सबसे ज्यादा बेबी कॉर्न पैदा करने वाला और दुनिया को निर्यात करने वाला देश है. मगर भारत में बेबी कॉर्न की उत्पादन क्षमता अधिक है और उत्पादन लागत दूसरे देशों की तुलना में कम है. बेबीकॉर्न की फसल रबी में 110-120 दिन, जायद में 70-80 दिन और खरीफ में 55-65 दिन में तैयार हो जाती है. एक एकड़ जमीन में बेबी कॉर्न उगाने की लागत 15 हजार रुपये तक आती है, जबकि आमदनी एक लाख रुपये तक हो सकती है. एक किसान एक साल में बेबी कॉर्न की चार बार फसल काटकर चार लाख रुपये तक कमा सकता है. इसकी खेती अपने देश में साल भर की जा सकती है. उत्तर भारत में यह बुआई फरवरी से नवम्बर तक की जा सकती है. खरीफ सीजन में बेबी कॉर्न की इन किस्मों की खेती कर आप बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
बेबी कॉर्न की LBCH-3 किस्म खरीफ मौसम में खेती के लिए बेहतर मानी जाती है. यह किस्म भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान लुधियाना द्वारा विकसित की गई है. यह किस्म साल 2020 में जारी की गई थी. इसकी फसल 50 से 55 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म की उपज प्रति एकड़ छिलके सहित 50 क्विंटल और बिना छिलके 20 क्विंटल मिल जाती है. इसके भूट्टे का रंग क्रीमी और आकर्षक होता है. इस किस्म की खेती की सिफारिश जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मेघालय, सिक्किम, असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश राज्यों के लिए की गई है.
खरीफ मौसम के लिए IMHB-1539 बेबी कॉर्न की अच्छी किस्म है, जिसे भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान लुधियाना द्वारा विकसित किया गया है. इसे साल 2018 में रिलीज किया गया था. यह अगेती किस्म है जो 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है, इस किस्म की उपज प्रति एकड़ छिलके सहित 60 क्विंटल और बिना छिलके वाली 18 से 20 क्विंटल उपज मिल जाती है. इसके भूट्टे का रंग क्रीमी औरआकर्षक होता है. यह किस्म जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड (पहाड़ी क्षेत्र), मेघालय, सिक्किम, असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश राज्यों के लिए अनुशंसित है.
यह किस्म भी भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है. इसे भी साल 2018 में रिलीज किया गया था. इस किस्म की फसल 55-60 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी उपज प्रति एकड़ छिलके सहित 70 क्विंटल और बिना छिलका 20 क्विंटल तक मिल जाती है. इसके भूट्टे का रंग क्रीमी और आकर्षक होता है. यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, पश्चिमी यू.पी., राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए अनुशंसित है.
इसके अलावा आजाद कमल, एचएम-4, बीएल-42 और प्रकाश किस्मों का चयन कर बेबी कॉर्न की खेती की जा सकती है. इन किस्मों की उपज छिलका सहित 42 क्विंटल से 50 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है और बिना छिलके के 15 कुन्तल से 20 कुन्तल तक की होती है. ये किस्में 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती हैं.