भारत में चावल के शौकीन लोगों की कमी नहीं है. यही वजह है कि बंपर उत्पादन होने साथ यहां खपत भी ज्यादा है. लेकिन, डायबिटीज के मरीज और ऐसे लोग जिनका शुगर लेवल बढ़ रहा है, उन्हें अपना मन मारकर इसे छोड़ना पड़ता है, क्योंकि चावल खाने से शुगर लेवल हाई हो जाता है और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में इस समस्या को दूर करने के लिए फिलीपींस स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के वैज्ञानिकों ने बहुत ही कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (45 से कम) वाला चावल बनाया है.
इस चावल का GI 44 हैं. वहीं, इसके पिसे हुए चावल में करीब 16 प्रतिशत प्रोटीन होता है. यानी अभी बाजार में जो चावल उपलब्ध हैं, उनसे दाेगुना. ऐसे में जो लोग प्रोटीन को लेकर जागरूक है उनके लिए भी यह बेहद अच्छा विकल्प है. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, IIRI के उपभोक्ता-संचालित अनाज गुणवत्ता और पोषण अनुसंधान इकाई के प्रमुख और इस खोज के प्रमुख नेसे श्रीनिवासुलु ने बताया कि उनकी टीम ने चावल में कम और बहुत कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) के लिए बनाने के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान की है. अभी बाजार में जो चावल किस्में है, उनका मौजूदा किस्मों का जीआई 70 से 77 के बीच है.
बता दें कि GI वैल्यू ज्यादा होने के कारण चावल का पाचन तेज से होता है और ब्लडफ्लो में ग्लूकोज बढ़ाता है और शुगर लेवल हाई हो जाता है. चावल की यह किस्म बाजरा के मुकाबले भी GI वैल्यू में बेहतर है. श्रीनिवासुलु ने आगे बताया कि IRRI ने सांबा मसूरी में अल्ट्रा-लो जीआई और हाई प्रोटीन दोनों गुणों को सफलतापूर्वक मिलाया है. नई किस्म फिलीपींस की जलवायु परिस्थितियों में 6.2 टन प्रति हेक्टेयर तक की बढ़ी हुई पैदावार देने में सक्षम है और इसमें एक अन्य जीन (OSTPR) भी मौजूद है, जो इसकी पैनिकल शाखाओं को बढ़ाता है.
वहीं, इस किस्म की फसल 140 दिन के बजाय 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यानी 30 दिन कम. उन्होंने आगे कहा कि इसे उगाने वाले किसानों को इसके बाजार भाव से भी काफी फायदा होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि यह सामान्य गैर बासमती चावल के औसत 350 डॉलर प्रतिटन भाव के मुकाबले 1600 डॉलर प्रतिटन भाव तक बिक सकती है.
उन्होंने कहा कि आईआरआरआई ओडिशा सरकार के साथ मिलकर इन पौष्टिक किस्मों को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम कर रहा है. जिसका उद्देश्य प्रोसेसिंग सुविधा में प्रशिक्षण और उद्यमशीलता के अवसर देकर स्व सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना है. ओडिशा में साल 2026 में कम जीआई, अति-कम जीआई और उच्च प्रोटीन चावल की पायलट खेती की शुरुआत होगी.
वहीं, एक और बड़े घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने बीते दिनों टूटे चावल के निर्यात से सितंबर 2022 से लगे प्रतिबंध को हटा दिया. अब निर्यातकों का मानना है कि सरकार के इस कदम से आने वाले वित्त वर्ष में गाम्बिया, बेनिन और सेनेगल और इंडोनेशिया सहित पश्चिमी अफ्रीकी देशों में टूटे चावल के निर्यात के विस्तार में मदद मिलने की उम्मीद है.
प्रतिबंध से पहले भारत 1 से 2 मिलियन टन टूटे चावल का निर्यात करता था, लेकिन प्रतिबंध के बाद भारत के ग्राहकों ने वियतनाम, थाईलैंड और पाकिस्तान की ओर रुख कर लिया और वहां से टूटे चावल खरीदने लगे.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष बी.वी. कृष्ण राव ने कहा है कि हम अगले कुछ महीनों में पहले की तरह चावल निर्यात में अपनी पकड़ बना लेंगे. इससे भारत को चावल के केंद्रीय पूल स्टॉक को घटाने में मदद मिलने की संभावना है और अफ्रीकी देशों को सस्ता अनाज हासिल करने में मदद मिल सकती है.