
कश्मीर घाटी के पुलवामा के काकापोरा इलाके में किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो रबी सीजन की शुरुआत कैसे करें. वजह खेतों में पीले-भूरे रंग की सिल्ट के नीचे खेती की जमीन का दब जाना. यह सिल्ट या गाद सितंबर के महीने में दक्षिण कश्मीर में आई बाढ़ का वह निशान है जिसे घाटी के लोग बस किसी तरह से भूल जाना चाहते हैं. उस बाढ़ की वजह से दक्षिण कश्मीर का कृषि क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो गया था. इसी सिल्ट के नीचे धान की वह फसल भी दबी हुई है जिसकी कटाई की तैयारी किसान कर रहे थे.
ग्रेटर कश्मीर की रिपोर्ट के अनुसान नमन गांव के किसान गुलाम नबी गनी का कहना है कि उनकी पूरी फसल अब सड़ चुकी है. गुलाम नबी गन ने बताया, 'आमतौर पर अक्टूबर के आखिरी हफ्ते तक कटाई पूरी हो जाती है. लेकिन इस साल हमारे खेत अभी भी गाद से ढके हुए हैं. फसल इतनी गीली है कि उसे काटा नहीं जा सकता और अब ज्यादातर फसल सड़ चुकी है.' उन्होंने बताया कि नवंबर की शुरुआत तक, किसान आमतौर पर अगले बुवाई के मौसम के लिए अपने खेतों को तैयार कर रहे होते हैं. गनी अब बस किसी तरह से जमीन के सूखने का इंतजार कर रहे हैं. उनका कहना था कि बाढ़ ने कश्मीर घाटी के किसानों को पूरी तरह से पीछे धकेल दिया है.
बेमौसम बारिश ने पुलवामा में खेतों को जलमग्न कर दिया. इससे सिंचाई नहरें जाम हो गईं और गाद की एक मोटी परत बन गई. अकेले काकापोरा में ही दर्जनों गांव इसे प्रभावित हुए है. इसकी वजह से पकने के महत्वपूर्ण चरण में धान की फसल को नुकसान पहुंचा. काकापोरा के कृषि विस्तार अधिकारी तौसीफ अहमद ने कहा, 'तेज बारिश के कारण भारी जलभराव हो गया और खेत गाद से भर गए. करीब 28 गांव प्रभावित हैं. विभाग ने नुकसान का आकलन कर लिया है और मुआवज के लिए एक रिपोर्ट सौंप दी है.'
अहमद ने बताया कि कुछ किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत अपनी फसलों का बीमा कराया है. अब और दावों का निपटारा होने पर उन्हें राहम मिल सकेगी. लेकिन कई किसानों को भारी नुकसान हुआ है. काकापोरा के एक किसान अली मुहम्मद ने कहा, 'मेरे खेत अभी भी पानी से भरे हुए हैं. गाद जम गई है और गिरे हुए पौधे भी जम गए हैं. सब कुछ बर्बाद हो गया है. हम सरकार से मदद की अपील करते हैं ताकि हम फिर से शुरुआत कर सकें.'
किसानों का कहना है कि 800 रुपये प्रति कनाल का प्रस्तावित मुआवजा उनके नुकसान की तुलना में बहुत कम है. एक और किसान ने कहा, 'इससे खाद और मजदूरी की लागत भी पूरी नहीं होती, हमारी खोई हुई आय की तो बात ही छोड़ दीजिए.' कटाई का मौसम बीत रहा है और खेत अभी भी गाद से ढके हुए हैं, काकापोरा के किसानों को डर है कि बाढ़ के नतीजे लंबे समय तक झेलने होंगे न केवल इस साल की उपज पर, बल्कि अगले बुआई चक्र पर भी.
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