Papaya Farming: पूर्वांचल में 'पपीते' की खेती से मालामाल हो रहे किसान, जानिए तकनीक और सालाना कमाई

Papaya Farming: पूर्वांचल में 'पपीते' की खेती से मालामाल हो रहे किसान, जानिए तकनीक और सालाना कमाई

केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.एसपी सिंह के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां जमीन ऊंची है. जल निकासी का बेहतर प्रबंध है, वहां पपीते की खेती संभव है. साल भर इसकी मांग को देखते हुए आर्थिक रूप से भी यह उपयोगी है.

ऊंची जमीन पर संभव है पपीते की खेती (Photo- Kisan Tak)ऊंची जमीन पर संभव है पपीते की खेती (Photo- Kisan Tak)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Nov 30, 2023,
  • Updated Nov 30, 2023, 9:09 AM IST

Papaya Farming In UP: पपीता एक ऐसा फल है जिसकी उपलब्धता लगभग बारहो महीने रहती है. पर, हम बाजार से जो पपीता लेते हैं उसकी आवक अमूमन दक्षिण भारत या देश के अन्य राज्यों से होती है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के नाते इसकी मांग भी ठीकठाक है. इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर गोरखपुर के कुछ किसान बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह की मदद से पपीते की खेती कर रहें हैं. पिराइच स्थित उनौला गांव के धर्मेंद्र सिंह और बांसगांव तहसील के माहोपार निवासी दुर्गेश मौर्य भी ऐसे ही किसानों में से हैं जो पपीते की खेती से आमदनी बढ़ा रहे हैं. बकौल धर्मेंद्र, एक एकड़ की खेती में लागत करीब एक लाख रुपये आई थी जबकि 1.5 लाख रुपये की शुद्ध बचत हुई. उनके मुताबिक ठंड में फसल की बढ़वार रुक जाती है और अधिक गर्मी में फूल गिरने की समस्या आती है. बाकी समय में पपीते की खेती संभव है.

ऊंची जमीन पर संभव है पपीते की खेती : डॉ. एसपी सिंह

केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.एसपी सिंह के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां जमीन ऊंची है. जल निकासी का बेहतर प्रबंध है, वहां पपीते की खेती संभव है. साल भर इसकी मांग को देखते हुए आर्थिक रूप से भी यह उपयोगी है.

उनौला के धर्मेंद्र और माहोपार के दुर्गेश ले रहे फसल

डॉ.एसपी सिंह के मुताबिक पपीता की उन्नत खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है. पूर्वांचल के बांगर इलाके में ऐसी जमीन उपलब्ध है. पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है.

पपीते की प्रजातियां

देशी प्रजातियां

पंत पपीता-1, 2, पूसा नन्हा, पूसा ड्वॉर्फ, को०-1,2,3 व 4 आदि। इन प्रजातियों में नर व मादा पौधे अलग-अलग होते हैं.

शंकर प्रजातियां 

रेडलेडी-786, रेडसन ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, पूसा मैजेस्टी, कुर्ग हनीडयू, सूर्या आदि.
इन प्रजातियों के पौधे मादा एवं उभयलिंगी होते हैं जिससे हर पौधे में फलत होती है.

अक्टूबर और मार्च में करें रोपण

पपीता के पौधों का रोपण वर्ष में दो बार अक्टूबर व मार्च में किया जाता है. रोपण के दौरान लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 2-2 मीटर की रखें. इस तरह से रोपण में प्रति एकड़ करीब 1000 पौधों की जरूरत होगी.

रोपण के पहले की तैयारी

मानक दूरी पर 60-60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर उनको 15 दिन खुला छोड़ दें. इसके बाद हर गड्ढे  में 20 किग्रा सड़ी गोबर खाद, एक किग्रा नीम की खली, एक किग्रा हडडी का चूरा, 5 से 10 ग्राम फ्यूराडान अच्छी तरह मिलकर गड्ढे को भर दें. जब पौधे नर्सरी में 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई के हो जाएं तब रोपाई करें.

खाद-पानी

उर्वरक के रूप में 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस एवं 500 ग्राम पोटाश की मात्रा को चार भागों में बांटकर रोपाई के बाद पहले, तीसरे, पांचवे एवं सातवें महीने में प्रयोग करें. इसके अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व बोरान एक ग्राम/लीटर एवं जिंक सल्फेट 5 ग्राम/लीटरकी दर से पौधरोपण के चौथे व आठवें महीने में छिड़काव करें. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें.

साल भर में एक एकड़ खेत से 5 लाख तक आय संभव

पपीता के एक पौधे से साल में औसतन 40 से 50 किलोग्राम फल मिलता है. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 से 500 क्विंटल फल पैदावार एक वर्ष में होती है. जिससे 1 वर्ष में 4 से 5 लाख रुपए शुद्ध आय प्राप्त कर सकते हैं. एक बार रोपण किए गए पौधे से 3 वर्षों तक अच्छी फलत ले सकते हैं.

कीट व रोग नियंत्रण

पपीता विषाणु जनित मोजैक रोग के प्रति खासा संवेदनशील होता है. रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां गुच्छे जैसी हो जाती हैं. इसके रोकथाम के लिए डाइमेंथोएट 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से प्रति माह छिड़काव करना चाहिए. इसी तरह पदगलन रोग से भी फसल को खासी क्षति संभव है. रोगग्रस्त पौधों के जड़ और तना सड़ने से पेड़ सूख जाता है इसके नियंत्रण के लिए पपीता के बगीचे में जल निकास का उचित प्रबंध करें. कार्बनडाजिम व मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधों के तने के पास जड़ में प्रयोग करना चाहिए. पपीता की उन्नत प्रजाति के पौधे कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर पर उपलब्ध हैं।

पपीते के औषधीय गुण

पपीता के फलों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि आम के बाद दूसरे स्थान पर है. इसके अतिरिक्त विटामिन C एवं खनिज लवण भी पाए जाते हैं. ताजा फलों का तुरंत खाने के उपयोग के अतिरिक्त प्रसंस्करण से जेम, जेली, नेक्टर, कैंडीऔर जूस बनाया जा सकता है. कच्चे फलों से पेठा, बर्फी, खीर, रायता आदि भी बनाकर इनका लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता.

 

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