देश में आलू सभी प्रांतों में खाएं जाने वाली कंदीय सब्जी है.आलू हर मौसम में खाया जा सकता है.हमारे देश में चावल, गेहूं और गन्ने के बाद आलू की ही खेती सबसे अधिक होती है.आलू एक ऐसी सब्ज़ी है जिसे कितने भी दिनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है.और तरह-तरह के व्यंजन बनाए जा सकते हैं. शायद इसीलिए इसे सब्ज़ियों का राजा कहा जाता है. आलू से कई प्रकार की भोजन सामग्री बनाई जाती है. इतना ही नहीं आलू का प्रयोग कई घरेलू सौंदर्य नुस्को में भी किया जाता है. यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है.
बाजार में हमेशा इसकी मांग बनी रहेती है. इसे ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में आलू की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं. आज हम आपको आलू की ऐसे ही उन्नत किस्मों के बारे में बतायेंगे जिसकी खेती कर आप अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
यह आलू की उन्नत किस्म है जो प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक उपज देती है। इस किस्म के आलू की फसल 70 दिनों में ही तैयार हो जाती है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में इसकी पैदावार अच्छी होती है।
यह वेरायटी भारत के उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं छत्तीसगढ़ प्रदेशों में पैदावार की जाती है. इस किस्म से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. आलू की यह किस्म की खेती पहाड़ों एवं गंगा तट के किनारे पाए जाने वाले मैदानी क्षेत्र में अच्छी होती है.
इस किस्म के आलू के पौधे का तना लाल-भूरे रंग के धब्बे के साथ हरा होता है. फसल तैयार होने में 80 से 90 दिनों का समय लगता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल है. उत्तर भारत के मैदानी और पठारी इलाके इसकी खेती के लिए अच्छे हैं.
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आलू की इस किस्म से 350 – 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस किस्म पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है.
आलू की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देती है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल है। इसकी फसल 75 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है और उत्तर भारत के मैदानी इलाके इसकी खेती के लिए अच्छे हैं।
आलू की इस किस्म से 300 – 350 क्विंटल पैदावार होती है. यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार देती है. जिससे किसानों को अधिक लाभ होता है.
एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर यह बेहतरीन किस्म का आलू है, जो ज़्यादा ठंड के मौसम को भी बर्दाशत कर सकता है। इसकी उत्पादन क्षमता अन्य किस्मों से अधिक है और 90 से 100 दिनों में फसल तैयार होती है। स्वाद में भी यह आलू बहुत अच्छा होता है। प्रति हेक्टेयर इसकी उत्पादन क्षमता 350-400 क्विंटल है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए यह किस्म अच्छी है।
इसकी गिनती भी आलू की बेहतरीन किस्मों में की जाती है. यह किस्म पहाड़ी, मैदानी और पठारी इलाकों के लिए उपयुक्त है. इसकी फसल 80 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. मैदानी इलाकों में फसल जल्दी तैयार होती है. प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 150 से 250 क्विंटल तक होती है.