Rice Farming: चावल की इस खास किस्‍म पर मंडराया चिड़‍ियों का खतरा, जाल के नीचे छिपकर किसान बो रहे बीज 

Rice Farming: चावल की इस खास किस्‍म पर मंडराया चिड़‍ियों का खतरा, जाल के नीचे छिपकर किसान बो रहे बीज 

Rice Farming: एक किसान ने बताया कि इस बार वो इस मौसम में खास किस्‍म को उगा रहे हैं. चूंकि भारी मशीनें कच्ची मिट्टी में नहीं चल सकती हैं. इसलिए खेतों को तैयार करने के लिए मजदूरों को काम पर रखा गया है. यहां पर कुछ किसानों को धान के पोक्काली किस्‍म के असली बीज नहीं मिल सके हैं.

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क‍िसान तक
  • New Delhi,
  • Jun 25, 2025,
  • Updated Jun 25, 2025, 2:01 PM IST

केरल के कोच्चि में एक खास किस्‍म के चावल की खेती पर पक्षियों का खतरा मंडराने लगा है. पक्षियों से अपनी फसल को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए यहां के नयारामबलम में किसानों ने एक नया तरीका निकाली है. किसानों का एक समूह जाल के नीचे छिपकर पोक्कली चावल की खेती करने पर मजबूर है. एक किसान ने अपनी दो एकड़ की जमीन पर एक महीन जाल बिछाया है. उनकी यह जमीन एस 15 एकड़ के खेत का हिस्सा है जिस पर वर्तमान में खेती चल रही है. 

छोटे खेत बनते पक्षियों का निशाना 

पोक्काली चावल यहां अधिकांश पंचायतों में बहुत कम जगह पर उगता है. इसलिए ये छोटे-छोटे खेत पक्षियों का निशाना बन गए हैं और अब असुरक्षित हो गए हैं. पक्षियों का बड़ा झुंड अक्‍सर फसल का अधिकांश हिस्सा नष्‍ट कर देता है. ऐसे में किसानों ने नए या युवा पौधों को जाल के नीचे बंद करना शुरू कर दिया है. किसानों की मानें तो यह पहली बार नहीं है कि धान के किसानों ने अपनी फसल को जाल से ढकने की कोशिश की है. पिछले कुछ सालों में किसान बिना किसी रुकावट के एक खास किस्‍म के जाल के नीचे धान बो रहे हैं.  

100 रुपये प्रति किलो तक बीज 

एक किसान ने बताया कि इस बार वो इस मौसम में खास किस्‍म को उगा रहे हैं. चूंकि भारी मशीनें कच्ची मिट्टी में नहीं चल सकती हैं. इसलिए खेतों को तैयार करने के लिए मजदूरों को काम पर रखा गया है. यहां पर कुछ किसानों को धान के पोक्काली किस्‍म के असली बीज नहीं मिल सके हैं. कई किसान 100 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से वैकल्पिक किस्में खरीदने के लिए मजबूर हुए हैं. ऐसे में उनके लिए अपने खेतों को बचाना बहुत जरूरी हो गया है. उनका कहना है कि अगर जाल नहीं लगाया तो फिर सारी मेहनत बेकार हो जाएगी. 

खेती में नहीं है ज्‍यादा फायदा 

एक बार जब पोक्काली चावल के पौधे सही ऊंचाई तक बढ़ जाते हैं तो उन्हें मैन्युअली उखाड़ा जाता है और फिर पूरे खेत में लगाया जाता है. हालांकि जाल बिछाने औरमजदूरी की लागत के चलते किसानों को इसकी खेती से ज्‍यादा फायदा नहीं हो पाता है. लेकिन फिर भी उनका मानना है कि संयुक्त खेती के मॉडल में मछली के साथ धान को एकीकृत करने से ज्‍यादा से ज्यादा युवाओं को इस तरफ वापस लाया जा सकता है. 

क्‍या है पोक्‍काली की खासियत 

पोक्काली खारा पानी तक सहन करने वाली चावल की एक खास किस्‍म है. इसकी खेती सिर्फ दक्षिण भारत में होती है. दक्षिण के राज्‍य केरल के अलपुझा, कोट्टायम, त्रिशूर और एर्नाकुलम जिलों में करीब 5000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले एक्‍वाकल्‍चर क्षेत्रों में इसे ऑर्गेनिक तरीकों से उगाया जाता है. पोक्काली चावल को जीआई टैग भी मिला हुआ है. 

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