पूर्व केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री अरुण यादव ने मध्य प्रदेश के किसानों को कपास का दाम 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल देने की मांग की है. उनकी इस मांग पर व्यापारियों ने कटाक्ष करते हुए कहा कि मंडी को राजनीतिक मंच न बनाया जाए. दरअसल, खरगोन में कपास का कम दाम मिलने से किसानों में रोष है. सोमवार को कपास बेचने का मुहूर्त शुरू होते ही दाम को लेकर किसानों और व्यापारियों में विवाद शुरू हो गया था. किसानों को कपास का दाम 6400 से लेकर 7000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा था, जबकि वो 10,000 रुपये क्विंटल का भाव चाहते थे.
इसके चलते किसानों ने गुस्से में आकर कपास की नीलामी बंद करवा दी थी. गेट बंद करके वाहनों की आवाजाही भी रुकवा दी थी. लेकिन हंगामा और मंडी सचिव का घेराव करने के बाद भी किसानों को कपास का दाम नहीं मिल रहा है. ऐसे में अब इस मामले पर सियासी रोटी सेंकी जा रही है. व्यापारी इस मामले में नेताओं का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं. वो चाहते हैं कि मंडी अपने सिस्टम से चले, लेकिन किसानों की मांग भी अपनी जगह जायज है.
मंडी प्रभारी रामचन्द्र भास्करे ने बताया कि खरगोन की कपास मंडी में पहले दिन सोमवार को 253 बैलगाड़ी और 334 वाहनों से करीब 70 हजार क्विंटल कपास पहुंचा था. कपास का मुहूर्त पर 6664 रुपये का भाव मिला. भाव कम होने से गुस्साए किसानों ने मंडी गेट का पर ताला लगाकर सचिव का घेराव किया था. विरोध और हंगामा के चलते दूसरे दिन भी 24 वाहन और 12 बैलगाड़ी से ही कपास पहुंचा. कपास का दाम 3500 से 6671 प्रति क्विंटल रहा. मौसम खराब होने से बुधवार को 20 बैलगाड़ी और 100 वाहन ही कपास मंडी पहुंच पाया.
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किसानों का कहना है कि प्रदेश की सबसे बड़ी कपास मंडी होने के बावजूद हमें उचित दाम नहीं मिल रहा. पिछले साल 9000 से 11000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था. इस साल भी दाम अच्छा मिलने की उम्मीद की थी, लेकिन व्यापारियों ने किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अरुण यादव ने 10 हजार प्रति क्विंटल की दर से कपास खरीदी की मांग करते हुए कहा कि कपास का कम दाम मिलने से किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. यादव ने कहा कि महंगे बीज, दवाइयां और मजदूरी की दर बढ़ने से कपास उत्पादक किसान अपना खर्च भी नहीं निकल पा रहे हैं और कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं. खराब मौसम ने भी कपास उत्पादकों को निराश किया है. ऐसे में कपास का कम दाम मिलने से किसानों में आक्रोश स्वाभाविक है
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