इस वक्त देश में गेहूं और आटा का भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. इसे काबू में करने के लिए केंद्र सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत केंद्रीय पूल का 30 लाख टन गेहूं खुले बाजार में रियायती दर पर बेचने जा रही है. इसे लेकर किसानों की पैरोकारी करने वाले लोग सरकार की आलोचना कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस सेल से किसानों की इनकम (Farmers Income) पर चोट पहुंचेगी. इससे शहरी उपभोक्ताओं को 'थोड़ी' राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन किसानों को 'बड़ा' नुकसान होगा. इसका असर अप्रैल में आने वाली गेहूं की नई फसल पर पड़ेगा.
किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि गेहूं की ओपन मार्केट सेल लाने की असली मंशा तो यही है कि दाम घट जाए. आखिर कृषि उपज का ही दाम घटाने के लिए ही सरकार क्यों इतनी बेचैन रहती है. जबकि ऐसा करने से किसानों को सीधे तौर पर आर्थिक चोट पहुंचने वाली है. अगली फसल दो महीने में आने वाली है तो ऐसे वक्त में 30 लाख टन गेहूं मार्केट रेट से कम दाम पर रिलीज करने से किसानों को नुकसान होगा. इसका असर नई फसल के दाम पर पड़ेगा.
सिंह का कहना है कि गेहूं का दाम इस वक्त 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि सरकार ओएमएसएस के तहत 2350 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर बिक्री करने जा रही है. दूसरी ओर, रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 (अप्रैल-जून) के लिए गेहूं की एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल घोषित है. सरकार किसी भी सूरत में अप्रैल तक इसके आसपास गेहूं का भाव लाना चाहती है ताकि बफर स्टॉक के लिए खरीद हो सके. लेकिन यह कोशिश किसानों के हित के खिलाफ है.
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पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि जब गेहूं का दाम बढ़ने लगा था तब सरकार ने एक्सपोर्ट पर बैन लगाकर किसानों को नुकसान पहुंचाया. केंद्र ने 13 मई से गेहूं और 12 जुलाई 2022 से आटा, मैदा और सूजी के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी. अब ओपन मार्केट सेल लाकर अप्रैल में आने वाले नए गेहूं के दाम को कम करवाने की कोशिश हो रही है, ताकि सेंट्रल पूल के लिए गेहूं की पूरी खरीद हो सके. ओपन मार्केट सेल से शहरी लोगों को तो कुछ फायदा मिलेगा लेकिन, किसानों का भारी नुकसान होगा. सरकार को साफ करना चाहिए कि वो किसानों की इनकम बढ़ाना चाहती है या घटाना?
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष का कहना है कि सरकार अगर वाकई किसानों की आय बढ़ाने की समर्थक है तो दोतरफा चालें न चले. जब किसान एमएसपी गारंटी की बात करते हैं तब सरकार उसे देने से इनकार करती है. सरकार में शामिल लोग और उसके समर्थक खुले बाजार की पैरोकारी करते हैं. लेकिन जब किसी फसल का दाम बढ़ने लगता है तब उसको घटाने की कोशिश शुरू हो जाती है. इनकम बढ़ाना चाहती है तो फिर गेहूं का भाव घटाने के लिए इतना जोर क्यों लगा रही है. आज प्याज और लहसुन उत्पादक किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है तो क्या वो किसानों के हित के लिए ऐसा ही जोर उसका दाम बढ़ाने पर भी लगाएगी.
पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि सरकार की मंशा यह है कि किसी भी तरह अप्रैल तक गेहूं का भाव एमएसपी के आसपास आ जाए ताकि उसे सेंट्रल पूल के लिए गेहूं खरीदने में परेशानी न हो. लेकिन किसानों की जेब काटकर ऐसा काम नहीं करना चाहिए. यह सब समझते हैं कि सेंट्रल पूल के लिए गेहूं चाहिए. उसके लिए सरकार एमएसपी रिवाइज कर दे, ओपन मार्केट के रेट पर खरीद करे या फिर एमएसपी के ऊपर 500-600 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देकर किसानों से खरीद करे.
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