मक्का लगभग एक हजार उत्पादों के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होता है. लेकिन जब से इसका इस्तेमाल इथेनॉल बनाने के लिए होने लगा है तब से इसकी वैल्यू आसमान पर पहुंच गई है. दुनिया में इसके उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा फीड, स्टार्च और जैव ईंधन उद्योगों में इस्तेमाल होता है. हालांकि, भारत में दुनिया का सिर्फ 2 प्रतिशत ही मक्का पैदा होता है. जबकि यहां के कुल उत्पादन का करीब 47 फीसदी मक्का पोल्ट्री फीड में चला जाता है. यहां इसका औद्योगिक इस्तेमाल बहुत कम होता रहा है, लेकिन अब वक्त बदल गया है. इस साल इथेनॉल उत्पादन के लिए लगभग 110 लाख टन मक्के की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी. इसकी उपलब्धता बनी रहे इसके लिए मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) ने 'इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि' नामक प्रोजेक्ट शुरू किया है.
आईआईएमआर के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट के अनुसार इस प्रोजेक्ट के तहत अच्छी किस्मों के मक्के की बुवाई करवाई जा रही है. किसानों को मक्के की खेती के फायदे बताए जा रहे हैं. साल 2025-2026 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल करना है तो मक्का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत होगी. पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध करावाने होंगे. साथ ही वैज्ञानिक तौर-तरीके से खेती करवानी होगी.
इस प्रोजेक्ट से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसएल जाट का कहना है कि मक्के का उत्पादन बढ़ाना है तो न सिर्फ मक्के की खेती का एरिया बढ़ाना होगा बल्कि अच्छी किस्मों के बीजों की भी बहुत जरूरत होगी. इसके लिए हाइब्रिड किस्मों पर जोर दिया जा रहा है. हाइब्रिड तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करके हम मक्का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. खरपतवार और बीमारियों के मैनेजमेंट पर काम करना होगा. तब जाकर अच्छा उत्पादन और सही कीमत मिलेगी. बुवाई से पहले बीज उपचार जरूर करें.
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भारत में लगभग 75 फीसदी मक्का की खेती खरीफ मौसम में होती है. खेत की तैयारी जून के पहले सप्ताह में शुरू कर देनी चाहिए. खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई (15-20 सेमी) मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. अगर खेत गर्मियों में खाली हैं तो जुताई गर्मियों में करना अधिक लाभदायक रहता है. इस जुताई से खरपतवार, कीट पतंगें व बीमारियों की रोकथाम
में काफी सहायता मिलती है. खेत की नमी को बनाए रखने के लिए कम से कम समय में जुताई करके तुरंत पाटा लगाना लाभदायक रहता है. जुताई का मुख्य मकसद मिट्टी को भुरभुरी बनाना है. अगर किसान नई जुताई तकनीक जैसे शून्य जुताई का उपयोग न कर रहे हों तो कल्टीवेटर एवं डिस्क हैरो से लगातार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें.
इथेनॉल उत्पादन में क्रांति के लिए मक्के की नई किस्में विकसित की जा रही हैं. अब मक्के की नई किस्मों में 42 प्रतिशत इथेनॉल की रिकवरी स्तर की खासियत होगी. दूसरी ओर, इथेनॉल उत्पादन को लेकर एक और बड़ा फैसला होने वाला है. इसके तहत नए मक्का बीज को रिलीज के लिए अनुमोदन प्राप्त करते समय इथेनॉल सामग्री का उल्लेख करना होगा, जो पहले जरूरी नहीं था.
उधर, पंजाब में बहुत जल्द मक्के की नई वैरायटी PMH 17 लॉन्च होने वाली है जो कि एक हाईब्रिड किस्म है. यह किस्म बहुत जल्दी तैयार होती है. यह किस्म 96 दिनों में तैयार हो जाएगी. कम पानी खर्च होता है. इस किस्म की एक खासियत यह भी है कि इससे अनाज की अधिक उपज के साथ चारा भी भरपूर ले सकते हैं. मक्के की इस वैरायटी की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून अंत तक कर सकते हैं.
मक्के से इथेनॉल बनाने वाली डिस्टिलरियों को 431 करोड़ लीटर इथेनॉल की सप्लाई के लिए ऑर्डर मिले हैं, जिसके लिए 110 लाख टन से ज्यादा मक्के की जरूरत होगी. जबकि, चालू सीजन के दौरान 306 करोड़ लीटर की सप्लाई के लिए 80 लाख टन मक्के की जरूरत होगी. चूंकि टूटे हुए चावल की उपलब्धता पर्याप्त नहीं है और साथ ही इसकी कीमतें भी उतनी कम नहीं हैं, इसलिए ज्यादातर डिस्टिलर मक्के को तरजीह दे रहे हैं. इथेनॉल में मक्के के डायवर्जन की वजह से पोल्ट्री फीड बनाने वाली कंपनियों को पर किसानों को अच्छा दाम देने का दबाव बढ़ गया है. इस समय मक्के की एमएसपी 2,225 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि बाजार में इसका दाम 2300 से 2500 रुपये के बीच चल रहा है. इथेनॉल के लिए मांग बढ़ेगी तो किसानों को और फायदा मिल सकता है.
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