
मटर की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा है, क्योंकि इसकी खेती से किसानों को अच्छी कमाई होती है. खासकर अगर किसान मटर कि इन टॉप किस्मों को उगाएं तो अधिक कमाई की उम्मीद बढ़ जाती है. पहली बार यह बाजार में आती है तो लोग इसे खूब खरीदते भी हैं. ऐसे में अगर आप भी इस रबी सीजन मटर की खेती करना चाहते हैं और बेस्ट किस्मों को लेकर चिंतित है तो आप इन तीन खास किस्मों की खेती कर सकते है, जो न केवल बंपर पैदावार देने की क्षमता रखती हैं, बल्कि कई रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी होती हैं. आइए जानते हैं उनकी खासियत.
1. PSM-3: PSM-3 मटर की एक खास किस्म है. इस किस्म को जीबीपीयूएट, पंतनगर द्वारा विकसित किया गया है, मटर की पीएसएम-3 किस्म जल्दी तैयार होने वाली वैरायटी है. इसकी फलियां लंबी, घुमावदार और 8-9 बीजों वाली होती हैं. ये किस्म बुवाई के 60-75 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. यह किस्म चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) के प्रति प्रतिरोधी है. इस किस्म से किसानों को औसत उपज 9 टन प्रति हेक्टेयर तक मिल सकता है.
2. VL Matar 42: वीएल मटर 42 (VL Matar 42) मटर की एक प्रमुख किस्म है, जिसे विशेष रूप से चूर्णी फफूंदी रोग के प्रतिरोधी होने के लिए जाना जाता है. ये किस्म विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (VPKAS), अल्मोड़ा द्वारा विकसित की गई है. . इसकी परिपक्वता अवधि 108 से 155 दिन होती है, जो इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाती है. इस किस्म से लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है.
3. पीबी-89: पीबी-89 किस्म पंजाब में उगने वाली मटर की एक उन्नत किस्म है. इस किस्म की फलियां जोड़े में उगती हैं. यह किस्म बिजाई के 90 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके बीज स्वाद में मीठे होते हैं और इसकी फलियां 55 प्रतिशत बीज देती हैं. इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. पंजाब के अलावा इस किस्म की खेती, यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश में भी की जा सकती है.
किसान अगर मटर की खेती प्लानिंग से करें तो इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं. वहीं, मटर की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. हालांकि गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए परफेक्ट मानी जाती है. मटर की बुवाई बीजों के माध्यम से की जाती है. इसके लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल सबसे उपयुक्त है. पंक्तियों में बीजों को 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. ध्यान रखें कि इस फसल को समय-समय पर सिंचाई और खाद मिलती रहे.