कम पानी वाले इलाकों के लिए बेस्‍ट है फूट ककड़ी की खेती, स्‍वाद और कमाई दोनों में है लाजवाब

कम पानी वाले इलाकों के लिए बेस्‍ट है फूट ककड़ी की खेती, स्‍वाद और कमाई दोनों में है लाजवाब

फूट ककड़ी को काकड़ी, काकड़ि‍या, काचरा, डांगरा अन्‍य नाम से भी लोग पहचानते हैं. फूट ककड़ी को अपने विशेष खट्टे-मीठे स्‍वाद के लिए लोग खाना पसंद करते हैं. इसे सब्‍जी, सलाद रायता के रूप में इस्‍तेमाल कर खाया जाता है. इस फल की नई वैरायटि‍यां भी अब बाजार में उपलब्‍ध हैं, जिससे इसकी खेती करना और भी आसान हो रहा है. साथ ही यह कमाई के मामले में भी लाभदायक है.

Foot Kakdi Snap Melon FarmingFoot Kakdi Snap Melon Farming
प्रतीक जैन
  • Noida,
  • Mar 12, 2025,
  • Updated Mar 12, 2025, 8:36 PM IST

Snap Melon Farming: भारत में मौसमी फल-सब्जियों की भरमार है. कुछ फल-सब्यियां तो ऐसी हैं, जो जंगली पौधों की तरह ही अपने आप पनप जाती हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही सब्‍जी की खेती के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बहुत ही कम पानी वाले रेग‍िस्‍तानी इलाकों में भी उग जाती है. इसका नाम है ‘फूट ककड़ी’. इसे काकड़ी, काकड़ि‍या, काचरा, डांगरा अन्‍य नाम से भी लोग पहचानते हैं. फूट ककड़ी को अपने विशेष खट्टे-मीठे स्‍वाद के लिए लोग खाना पसंद करते हैं. इसे सब्‍जी, सलाद रायता के रूप में इस्‍तेमाल कर खाया जाता है. इस फल की नई वैरायटि‍यां भी अब बाजार में उपलब्‍ध हैं, जिससे इसकी खेती करना और भी आसान हो रहा है. साथ ही यह कमाई के मामले में भी लाभदायक है. आज जानिए इसकी खेती कैसे होती है और कौन-सी किस्‍में अच्‍छी होती है.

फूट ककड़ी की खेती कैसे करें?

फूट ककड़ी सूखे और गर्म जलवायु वाले इलाकों के लिए एक अच्‍छी फसल है. इसके अंकुरण के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. हालांकि, रेगिस्‍तानी इलाकों में 45-48 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी यह उग जाती है. सही तापमान मिलने पर 3 से 5 दिन की अवध‍ि में ही इसके बीज अंकुरित हो जाते हैं. वैसे तो गर्म जलवायु वाली यह फसल किसी भी प्रकार की मिट्टी में उग सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए बेस्‍ट मानी जाती है.

जमीन तैयार करते समय रखें यह ध्‍यान

इसकी खेती में यह ध्‍यान रखना जरूरी है कि मिट्टी का पीएच मान 7 हो. अच्‍छे से फसल लेने के लिए जल निकास की उचित व्‍यवस्‍था का ध्‍यान रखना बेहद जरूरी है. फूट ककड़ी की खेती के लिए जमीन तैयार करने के लिए खेत में 3 से 4 बार जुताई करना जरूरी है. बुवाई से पहले हल्की सिंचाई की जरूरत होती है, क्‍योंकि नमी वाली मिट्टी इसके बीज आसानी से अंकुरि‍त होते हैं और पौधों का अच्छा विकास होता है. इसकी बुवाई कतारों में की जाती है.

इन विध‍ियों से होती है खेती

ग्रीष्मकाल में फूट ककड़ी की बुवाई फरवरी और मार्च में की जाती है. और बारिश के मौसम में जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के आखिरी हफ्ते तक या पहली बारिश होने के तुरंत बाद भी की जा सकती है. फूट ककड़ी की खेत के लिए किसान इन तीन विधि‍यों को अपना सकते हैं और सफलतापूर्वक उत्‍पादन ले सकते हैं. 

पहली विध‍ि है- नाली विधि 

नाली विधि से फूट ककड़ी की खेती के लिए डेढ़ से दो किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर बीज की जरूरत होती है. इसके तहत दो से ढाई मीटर के गैप में 60 से 70 सेमी चौड़ाई वाली नालियां बनाकर इनके अंदर की उतरी ढलान पर 50 से 60 सेमी की दूरी पर 3 से 4 बीजों की बुवाई की जाती है. अगर आप फूट ककड़ी की व्यावसायिक खेती करना चाहते है तो यह विध‍ि बेस्‍ट है और ज्‍यादा फायदा देने में मददगार है.

दूसरी विध‍ि- कुड विध‍ि

नाली विध‍ि की तरह ही कुड वि‍धि‍ में भी बुवाई के लिए समान मात्रा में ही बीज लगते हैं, लेकि‍न यह विध‍ि रेतीले टीबों वाले और असमतल क्षेत्रों के लिए ज्‍यादा अच्‍छी है. इसमें बुवाई के लिए दो से ढाई मीटर की दूरी के गैप पर देसी हल की मदद से कुड बनाकर खाद के साथ 50-60 सेमी के गैप पर 2-3 बीजों की बुवाई की जाती है. 

तीसरी विध‍ि- मिश्रित फसल उत्पादन

मिश्रित फसल उत्पादन के तहत 5-6 मीटर की दूरी पर हल से कुड बनाकर बुवाई की जाती है. उत्‍पादन के लिए यह विध‍ि भी कारगर है.

कितने खाद पानी की होती है जरूरत?

फूट ककड़ी की अच्छी पैदावार लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 ट्रॉली सड़े हुए गोबर की खाद, 80 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किग्रा पोटाश की जरूरत पड़ती है. इसमें नाइट्रोजन की आधी और फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा मात्रा की जरूरत खेत तैयार करने के लगती है. इसके बाद बची हुई आधी नाइट्रोजन का इस्‍तेमाल करने के लिए इसे दो समान भागों में बांट लें और जब पौधों में 4-5 पत्तियों आ जाएं तब इस्‍तेमाल करें. अब बची हुई नाइट्रोजन को फूल बनने के पहले टॉप ड्रेसिंग के रूप में इस्‍तेमाल करें.

खरपतवार नियंत्रण के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें

यह फसल ज्‍यादा सिंचाई नहीं मांगती है. हालांकि बारिश न होने पर 10 से 15 दिनों के गैप में सिंचाई करें. अगर ज्‍यादा बारिश हो रही है तो पानी के निकास के लिए गहरी और चौड़ी नालियों की व्‍यवस्‍था करें. वहीं जब गर्मियों में ज्‍यादा तापमान हो तो 4-5 दिनों के गैप में सिंचाई करें. खरपतवार को काबू करने के लिए खुरपी की मदद से 25 से 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें.

कितने दिन में मिलेगा उत्‍पादन?

फसल के दौरान 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करें और जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा दें. इससे अच्‍छी फसल लेने में मदद मिलेगी. फूट ककड़ी की फसल की बुवाई के 60-80 दिन के बाद इसके फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. शुरू में जल्‍दी फल तोड़ने पर ये स्‍वाद में कड़वे लगते हैं. गर्मी में लगाई फसल से 175-200 क्विंटल और वर्षाकालीन से 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन संभव है.

फूट ककड़ी की उन्‍नत किस्‍में

AHS-10 

फूट ककड़ी की AHS-10 किस्‍म प्रति हेक्‍टेयर 200-220 क्विंटल उत्‍पादन देने में सक्षम है. इसमें बुवाई के 26 दिन बाद नर और 38 दिन बाद मादा फूल खिलने लगते हैं. वहीं, 68 दिन बाद ही पके फलों की तुड़ाई की जा सकती है. फल तोड़ने की अवधि‍ 120 दिन तक जारी रहती है. इसके फल आयताकार और मीडियम साइज के होते हैं.

AHS- 82 

फूट ककड़ी की AHS- 82  किस्‍म प्रति हेक्टेयर 225-250 क्विंटल उत्‍पादन देने में सक्षम है. इसमें बुवाई के 28 दिन बाद नर और 35 दिन बाद मादा फूल खिलने की शुरुआत होती है. फलों की तुड़ाई 70 दिन बाद शुरु हो जाती है और 110-115 दिन तक जारी रहती है.

सूखे फल और बीज की बाजारों में बि‍क्री

फूट ककड़ी के फल सूखने के बाद इसके फल और बीज दोनों बाजार में बिकते हैं. राजस्‍थान में इसके सूखे फल को खेलड़ा कहा जाता है, जिसे उपहार के तौर पर दिए जाने का चलन है. बीजों का इस्‍तेमाल मिठाइयों और ठंडाई में किया जाता है. लेकिन सब्‍जी के रूप में फूट ककड़ी अन्‍य सब्जियों जितनी लोकप्र‍िय नहीं है, लोग इसे कच्‍चा ही खाते हैं. 

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