लेयर फार्मिंग से भी गजब है ये तकनीक, बतख पालन के साथ करें धान और अजोला की खेती, कमाएं बंपर मुनाफा

लेयर फार्मिंग से भी गजब है ये तकनीक, बतख पालन के साथ करें धान और अजोला की खेती, कमाएं बंपर मुनाफा

आपको बता दें कि धान और अजोला की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. साथ ही बतख पालन के लिए भी पानी की जरूरत होती है. इतना ही नहीं बतख पालन को जैविक धान की खेती में शामिल करने से खाद, शाकनाशी और कीटनाशकों की जरूरत खत्म हो जाती है.

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प्राची वत्स
  • Noida,
  • Feb 27, 2025,
  • Updated Feb 27, 2025, 3:15 PM IST

अगर वैज्ञानिक तरीकों और नई तकनीक का इस्तेमाल करके खेती की जाए तो किसानों को इससे काफी फायदा मिलता है. किसान कम समय और कम जगह में एक साथ खेती कर पाते हैं, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़ जाती है. यही वजह है कि आज के समय में ज्यादातर किसान तकनीक का इस्तेमाल करके खेती करना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं, कृषि वैज्ञानिक और अन्य सलाहकार भी किसानों को इस ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि उन्हें इसका लाभ मिल सके. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे इस अनोखी तकनीक के बारे में जहां एक ही खेत में बतख पालन के साथ-साथ धान और अजोला की खेती भी की जा सकती है. आइए जानते हैं क्या है ये अनोखी तकनीक.

पानी की होती है जरूरत

आपको बता दें कि धान और अजोला की खेती के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. साथ ही बतख पालन के लिए भी पानी की जरूरत होती है. इतना ही नहीं बतख पालन को जैविक धान की खेती में शामिल करने से खाद, शाकनाशी और कीटनाशकों की जरूरत खत्म हो जाती है. पानी में रहने वाली बतखें जब अपना मल पानी में छोड़ती हैं तो यह धान के लिए खाद का काम करती है जिससे खाद की कमी पूरी हो जाती है.

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नाइट्रोजन फिक्स करता है अजोला

अजोला की बात करें तो इसका इस्तेमाल हरी खाद के तौर पर किया जाता है. यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करता है और इसे पत्तियों में जमा कर देता है. अजोला में 3.5 प्रतिशत नाइट्रोजन और कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं. यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है जिसकी मदद से पैदावार में बढ़ोतरी होती है. इस तकनीक का इस्तेमाल अब दक्षिण पूर्व एशिया में किसानों की आय बढ़ाने, पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए किया जा रहा है.

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बतखों से मिलती है प्राकृतिक खाद

बतख पालन के लिए घास के मैदान और तालाब प्राकृतिक संसाधनों के रूप में उपयोग किए जाते हैं. कटाई के बाद धान के खेत बतखों के लिए उत्तम आहार का जरिया है. धान के गिरे हुए दाने, कीड़े, घोंघे, केंचुए, छोटी मछलियां और जलीय पौधे जैसे शैवाल आदि बतखों के आहार का काम करते हैं. बतखें कीड़े, घोंघे, खरपतवार खाकर चावल के खेतों को साफ करती हैं. वे धान के खेतों को खाद के रूप में अपना मल छोड़ती हैं. इसलिए उनके जरिए रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग भी कम किया जाता है.

बतखों के कारण पानी की आवाजाही और पानी में हलचल के कारण फोटोसिंथेसिस में कमी के कारण खरपतवार कम होते हैं. एक हेक्टेयर धान के खेत के लिए लगभग 200-300 बतखें उपयुक्त होती हैं. 

किसानों की आय में बढ़त

बतख पालन, धान और अजोला खेती तकनीक से धान की खेती करने से सबसे पहले मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है और बाद में ग्लोबल वार्मिंग में भी कमी आती है. केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान की मदद से कई जगहों पर बतख पालन, धान और अजोला खेती को एकसाथ करने से किसानों की आय में वृद्धि हुई है. धान की खेती से किसानों की आय में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. इस विधि से खेती करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.

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