मॉनसून की दस्तक के साथ ही पौधरोपण का मौसम आ गया है, और यह समय फलों के पेड़, खासकर आम के नए बाग लगाने के लिए सबसे बेहतर है. अगर आम का बाग लगाने की सोच रहे हैं, तो यह आपके लिए बेहतरीन अवसर है. एक बार सही किस्मों का चुनाव और सही तरीके से लगाया गया आम का बाग दशकों तक फल देता है. हालांकि शुरुआती चरणों में की गई कोई भी गलती भविष्य में बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए आम का बाग लगाने की वैज्ञानिक पद्धति और खास सावधानियों के बारे में जरूर जान लेना चाहिए जिससे आम के बाग से अधिक लाभ कमा सकते हैं. इसके बारे में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-समस्तीपुर, बिहार में अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के पूर्व प्रधान अन्वेषक और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और प्रमुख फल रोग विशेषज्ञ डॉ. एस.के. सिंह ने कुछ खास टिप्स दिए हैं.
सबसे पहले, अपने बाग के लिए ऐसी जगह चुनें जो सड़क और बाज़ार के नज़दीक हो. इससे फलों की बिक्री और कृषि सामग्री की खरीद में आसानी होगी. आम के बाग की जगह का चयन करते समय यह सुनिश्चित करें कि वहां सिंचाई की सुचारू व्यवस्था हो और जल निकासी भी अच्छी हो, ताकि बारिश का पानी खेत में जमा न हो. आम की बागवानी के लिए मध्यम से हल्की, गहरी और अच्छी जलधारण क्षमता वाली मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है. खेत को समतल करें और जहां जरूरी हो, वहां हल्की ढाल दें ताकि बारिश का पानी आसानी से बाहर निकल सके. खेत से पुराने खरपतवार, पत्थर और अन्य अवशेषों को अच्छी तरह हटाना भी जरूरी है.
आम के बाग का लेआउट तैयार करते समय पौधों के बीच उचित दूरी रखना बेहद जरूरी है. इससे पौधों को विकास के लिए पर्याप्त जगह मिलेगी और धूप और हवा का संचार बना रहेगा, जो उनकी अच्छी वृद्धि के लिए जरूरी है.
लंबी किस्में -मालदा, लंगड़ा, चौसा और फजली जैसी लंबी बढ़ने वाली आम की किस्मों के लिए 12×12 मीटर की दूरी बेहतर मानी जाती है.
बौनी किस्में- जैसे दशहरी, नीलम और तोतापुरी जैसी बौनी किस्मों को 10×10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए.
डबल रो हेज सिस्टम (बौनी किस्में)- इस प्रणाली में बौनी किस्मों के लिए (5×5)×10 मीटर की दूरी रखी जाती है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 220 पौधे लगाए जा सकते हैं. अति सघन बाग के लिए आम्रपाली जैसी किस्मों के लिए अति सघन बाग विधि अपनाई जाती है, जहां पौधे 2.5×2.5 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं, जिससे प्रति हेक्टेयर 1600 पौधे लगाए जा सकते हैं. सही दूरी पर रोपण से उत्पादन में वृद्धि होती है और पौधे लंबे समय तक स्वस्थ रहते हैं.
पौध रोपण के लिए गड्ढे का आकार मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करता है. सामान्यतः 1×1×1 मीटर के गड्ढे खोदें. गड्ढे खोदते समय ऊपरी और निचली मिट्टी को अलग-अलग रखें. प्रत्येक गड्ढे में 50 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश अच्छी तरह मिलाएं.गड्ढे को 2-3 हफ्ते तक धूप में खुला छोड़ दें ताकि हानिकारक कीट-पतंगे और रोगाणु नष्ट हो सकें. इसके बाद पहले खाद मिश्रित मिट्टी और फिर ऊपर की साफ मिट्टी से गड्ढे को भर दें.
उत्तर और पूर्वी भारत में आम का रोपण जून से सितंबर के बीच करना सबसे बेहतर माना जाता है. इस समय मॉनसून के कारण मिट्टी में पर्याप्त नमी रहती है, जिससे पौधे तेजी से जड़ पकड़ते हैं और उनकी वृद्धि बेहतर होती है. बाग की सफलता और दीर्घकालिक उत्पादकता अच्छी पौध पर निर्भर करती है. हमेशा प्रमाणित पौधशालाओं से ही स्वस्थ, रोगमुक्त और ग्राफ्टेड पौधे खरीदें. कमजोर और रोगग्रस्त पौधों का उपयोग करने से बचें. पौध रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करें. शुरुआती 2-3 महीनों तक मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है. खरपतवार नियमित रूप से हटाएं और पौधों को सीधा सहारा दें. पौधों के चारों ओर सूखी पत्तियों या प्लास्टिक शीट से मल्चिंग करें. घास, इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है. इस तरह आम के बाग का रोपण कर बेहतर उपज ले सकते हैं.