जनवरी का महीना कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, खासकर रबी फसलों और बागवानी फसलों के लिए, क्योंकि इस दौरान ठंड, शीतलहर और पाले जैसी मौसम की परिस्थितियां फसलों औऱ बागवानी पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं. ठंड और धुंध के कारण फसलों की वृद्धि और उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं. इस महीने में तापमान में गिरावट होने से पाले का खतरा बढ़ जाता है, जिससे फसलों औऱ बागवानी पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, उपयुक्त कृषि उपायों और समय पर किए गए प्रबंधन से फसलों को सुरक्षित रखा जा सकता है, ताकि उनकी फसलों की उपज में गिरावट न आए और वे मौसम के प्रभावों से सुरक्षित रह सकें.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी के हेड के डॉ.एसके सिंह अनुसार, जनवरी में ठंड और शीतलहर का प्रभाव गेहूं और सरसों के लिए लाभकारी हो सकता है. यह ठंड फसलों के कल्लों और पुष्पण के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है. लेकिन, अगर तापमान 4°C से नीचे चला जाता है, तो पाला लगने का खतरा बढ़ सकता है, जो गेहूं और सरसों की पत्तियों और फूलों को नुकसान पहुंचा सकता है. इससे उत्पादकता में गिरावट आ सकती है.
ठंड के मौसम में माइक्रोबियल गतिविधियां कम हो जाती हैं, जिसके कारण नाइट्रोजन का अवशोषण भी घट जाता है. इसका परिणाम यह होता है कि पौधों की निचली पत्तियां पीली हो जाती हैं. हालांकि, यह कोई बीमारी नहीं है और समय के साथ पौधे ठीक हो जाते हैं. गंभीर स्थिति में 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव किया जा सकता है. ठंड से बचाव के लिए हल्की सिंचाई करें और खेतों के किनारे धुआं करें. पाले से बचाव के लिए सिंचाई और मल्चिंग का प्रयोग करें. पौधों के आसपास की मिट्टी को गीला रखने के लिए हल्की सिंचाई करें.
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डॉ. एसके सिंह के अनुसार, ठंडा तापमान आलू के कंद वृद्धि के लिए उपयुक्त है, लेकिन ज्यादी ठंड और पाले के कारण कंद खराब हो सकते हैं. इसके अलावा, जलभराव से कंद सड़ने का खतरा भी हो सकता है, इसलिए जल निकासी पर विशेष ध्यान देना चाहिए. वहीं, जनवरी में शीतलहर टमाटर के लिए अच्छा होता है, लेकिन अत्यधिक ठंड से फूल गिरने की समस्या हो सकती है.
पाले के कारण टमाटर की पत्तियाँ और फल भी प्रभावित हो सकते हैं. आलू और टमाटर में देर से झुलसा (Late blight) रोग का खतरा बढ़ सकता है. जब तक आलू और टमाटर में झुलसा रोग के लक्षण नहीं दिखते, तब तक मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक का प्रयोग किया जा सकता है. रोग के लक्षण दिखने पर साइमोइक्सेनील मैनकोजेब या मेटालैक्सिल और मैनकोजेब मिश्रित दवा का छिड़काव करें.
डॉ. एसके सिंह के अनुसार, जनवरी में आम के मंजर की शुरुआत होती है. ठंडी और शुष्क जलवायु फूलों के विकास के लिए अनुकूल होती है, लेकिन अत्यधिक ठंड से पत्तियां और नए अंकुर प्रभावित हो सकते हैं. इसके अलावा, पाले से आम के बौरों को भी नुकसान हो सकता है. लीची के लिए ठंडी और शीतल जलवायु पुष्पन को बढ़ावा देती है, लेकिन पाला और ठंड से नई कोंपलें प्रभावित हो सकती हैं. इस समय नर्सरी में लगे पौधों को पाले से बचाने के लिए छप्पर से ढकना चाहिए और नवस्थापित बागों में छोटे पौधों को पुआल से ढक देना चाहिए.
बागों में समय-समय पर हल्की सिंचाई करें और पाले से बचाव के लिए धुआं करें. नवरोपित बागों की सिंचाई करें और बौरों का ध्यान रखें. लीची के बागों में फूलों के गिरने से बचने के लिए फरवरी में सिंचाई न करें. इसके अलावा, नर्सरी और नवस्थापित बागों में लगे पौधों को पाले से बचाने के लिए छप्पर से ढकना चाहिए. पौधों को पुआल या अन्य सामग्रियों से ढकने से पाले का प्रभाव कम किया जा सकता है.
बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य नियमित रूप से करें. सही समय पर और उचित कृषि उपायों का पालन करके इन फसलों को मौसम के नकारात्मक प्रभावों से बचाया जा सकता है. किसानों को अपने खेतों और बागों में पाले से बचाव के लिए सिंचाई, धुआं, मल्चिंग और पौधों के संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए. इससे न केवल फसलें सुरक्षित रहेंगी, बल्कि उनकी उपज में भी वृद्धि होगी.