अरहर की दाल सबके लिए समस्या बनी हुई है. किसान से लेकर कंज्यूमर और सरकार तक. किसान इसलिए परेशान है क्योंकि उसे ऐसी वैरायटी नहीं मिल रही है जो क्रांतिकारी पैदावार दे. उपभोक्ता यानी कंज्यूमर इसलिए परेशान है क्योंकि उसे सस्ते में अरहर की दाल नहीं मिल पा रही है. रेट हमेशा 150 रुपये किलो से ऊपर चढ़े रहते हैं. और सरकार इसलिए परेशान है क्योंकि आम लोगों को वह सस्ते में अरहर दाल उपलब्ध नहीं करा पा रही है. इस सबकी समस्याओं और चिंताओं का एक ही हल है-अधिक पैदावार देने वाली वैरायटी.
सरकार भी अरहर की ऐसी वैरायटी पर जोर दे रही है. तभी कुछ किस्में जारी की गई हैं जिनसे अच्छी पैदावार मिलती है. आइए इन किस्मों के बारे में जान लेते हैं. इनमें 2020 से 2021 के बीच उन छह किस्मों के बारे में जानेंगे जो राज्यों के मौसम के हिसाब से तैयार की गई हैं. इन किस्मों के नाम हैं-छत्तीसगढ़ अरहर-1 (आरपीएस 2007-10), सीजी अरहर-2 (सावित्री), गुजरात तुर 106 (माही), बिरसा अरहर-2 (बीएयूपीपी09-22), बीडीएन-2013-41 (गोदावरी) और डब्ल्यूआरजी-255 (वारंगल कांडी-2).
अरहर की इस किस्म को आईजीकेवी, रायपुर ने 2020 में तैयार किया था. यह किस्म छत्तीसगढ़ में उगाने के लिए उपयुक्त है. यह 165 से 175 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म अरहर की सबसे खतरनाक बीमारी उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी है. इस किस्म में मोजैक बीमारी भी नहीं लगती. इसमें फाइटोप्थोरा स्टेम ब्लाइट यानी की पीसीबी रोग भी नहीं लगता.
अरहर की इस किस्म को आईजीकेवी, रायपुर ने 2021 में तैयार किया था. यह किस्म छत्तीसगढ़ में उगाने के लिए उपयुक्त है. यह 170 से 180 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म अरहर की बीमारी उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी है. इस किस्म में स्टेम ब्लाइट रोग भी नहीं लगता.
यह तुर की किस्म है जिसे 2021 में एएयू आणंद, गुजरात ने विकसित किया है. यह किस्म गुजरात के लिए बनाई गई है. यह किस्म 165 से 175 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी है और एसएमडी के लिए मध्यम प्रतिरोधी है.
अरहर की इस किस्म को 2021 में बीएयू रांची ने तैयार किया है. यह किस्म झारखंड में उगाने के लिए बेस्ट है. यह तैयार होने में कुछ अधिक दिन लेती है और इसकी अवधि 240-250 दिनों की है. यह किस्म उकठा रोग और फली छेदक रोग के लिए प्रतिरोधी है.
बीडीएन-2013-41 (गोदावरी) अरह की ऐसी वैरायटी है जिसे 2021 में एआरएस बडनापुर ने तैयार किया. यह महाराष्ट्र में उगाई जाने वाली किस्म है जो 160 से 165 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म उकठा रोग, एसएमडी और व्हाइट सीडेड रोग के लिए प्रतिरोधी है.
इस किस्म को तेलंगाना के जेएआरएस, वारंगल ने 2021 में तैयार किया. इस किस्म को तेलंगाना में बुवाई के लिए तैयार किया गया है. यह किस्म 170-180 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी, मध्यम और गहरी काली मिट्टी और खरीफ और देर से खरीफ बुवाई के लिए उपयुक्त है. साथ ही फ्यूजेरियम विल्ट के प्रति प्रतिरोधी है.
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