हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में एक नई बहस छिड़ गई है. यह विवाद इस बात को लेकर है कि बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न को कृषि (एग्रीकल्चर) फसल माना जाए या बागवानी (हॉर्टिकल्चर) फसल. हरियाणा के एक किसान की मांग से शुरू हुई यह बहस अब ICAR के दो बड़े विभागों- फसल विभाग और बागवानी विभाग- के बीच एक तरह की खींचतान बन गई है.
हरियाणा के किसान कंवल सिंह चौहान ने कृषि मंत्री को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया कि बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न को मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) के तहत लाया जाए. यह योजना किसानों को वित्तीय सहायता देती है और बागवानी फसलों को बढ़ावा देती है. मंत्री ने यह मामला ICAR को भेजा, जिसके बाद इसपर बहस शुरू हो गई.
वहीं, फसल विभाग (क्रॉप्स डिविजन) का कहना है कि बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न असल में मक्का (मकई) की ही किस्में हैं, इसलिए इन पर रिसर्च का जिम्मा भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना को ही मिलना चाहिए.
हरियाणा के महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय (MHU) के कुलपति सुरेश कुमार मल्होत्रा ने ICAR को पत्र लिखकर कहा कि उनके विश्वविद्यालय को स्पेशलिटी कॉर्न ट्रायल के लिए शामिल किया जाए. IIMR के निदेशक ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया, खासकर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में बढ़ती मांग को देखते हुए.
एक पूर्व ICAR अधिकारी ने सही सवाल उठाया- "किसान को इससे फर्क नहीं पड़ता कि रिसर्च कौन कर रहा है. उन्हें बस यह चाहिए कि फसल को MIDH योजना में शामिल किया जाए और उन्हें आर्थिक मदद मिले." यही असली मुद्दा है- किसान को सीधी सहायता और तकनीकी मदद कैसे मिले.
यह जरूरी है कि ICAR अपने आंतरिक मतभेदों को दूर करे और किसानों के हित में फैसला ले. बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न आज की बदलती कृषि जरूरतों के अनुसार बेहद उपयोगी फसलें हैं. इन्हें उचित योजना, सहयोग और समर्थन की जरूरत है ताकि भारत में इनकी खेती और बाजार दोनों मजबूत हो सके.
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