कभी देश-विदेश में मशहूर था करौली का पान, आज दम तोड़ रही है इसकी खेती

कभी देश-विदेश में मशहूर था करौली का पान, आज दम तोड़ रही है इसकी खेती

करौली जिले में मासलपुर की पान की खेती (betel farming) बहुत मशहूर है. यहां का पान देश-विदेश में लोगोंं की पसंद बन चुका है. यहां का पान पाकिस्तान, बांग्लादेश और खाड़ी देशों में जा चुका है. देश के कई शहरों में मासलपुर का पान सप्लाई होता है. लेकिन लागत बढ़ने और सरकारी अनदेखी के चलते यहां के पान की खेती चौपट होने की कगार पर है.

करौली के मासलपुर में पान की खेती अपने अंतिम दौर में हैकरौली के मासलपुर में पान की खेती अपने अंतिम दौर में है
क‍िसान तक
  • Karauli (Rajasthan),
  • Jan 17, 2023,
  • Updated Jan 17, 2023, 6:35 PM IST

राजस्थान के करौली जिले के मासलपुर में पुराने जमाने से पान की खेती होती है. यहां रहने वाले तमोली जाति के लोग परंपरागत रूप से पान की खेती करते हैं और उसी से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. महंगाई अधिक होने के कारण और पान के पत्ते का दाम सही नहीं मिलने से अब इस खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है. अब यहां के 25 फीसद किसान ही पान की खेती को जिंदा रखे हुए हैं. देश में पान खाने की परंपरा मुगल काल से ही चली आ रही है. मासलपुर का पान अपनी विशेषताओं के कारण अलग पहचान रखता है. मासलपुर का पान पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अरब देशों में प्रसिद्ध है. लेकिन आज के दौर में यह खेती अपनी अंतिम सांसें गिन रही है.

करौली जिले का पान देश-विदेश के लोगों की शौक बढ़ा चुका है. करौली के पान के पत्तों को किसान बड़ी टोकरी में भरकर मासलपुर से दिल्ली तक बसों से पहुंचाते हैं. मासलपुर का पान बाजार में थोड़ा महंगा जरूर मिलता है, लेकिन लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं. जिस तरह उत्तर प्रदेश में बनारस का पान प्रसिद्ध है, उसी तरह राजस्थान में मासलपुर का पान प्रसिद्ध है. मासलपुर में पान की बुआई होली के बाद चैत्र माह में की जाती है जो कि तीन साल तक रहती है. हर साल एक बिस्वा पान की खेती से लगभग एक से दो लाख रुपये की आय किसान को होती है. 

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देसी पान का पत्ता होने के कारण मासलपुर के पान की मांग दिल्ली, आगरा, मेरठ, सहारनपुर, कानपुर जैसे बड़े शहरों में सबसे अधिक है. दिल्ली से मासलपुर का पान मुस्लिम देशों में भी सप्लाई किया जाता रहा है. इन सभी उपलब्धियों के बावजूद अब मासलपुर के पान की खेती करने वाले तमोली समाज के किसानों का मोहभंग हो चुका है. ज्यादातर किसान मेहनत मजदूरी करने के लिए बाहर निकल गए हैं. पहले पूरे मासलपुर में 100 से अधिक किसान पान की खेती कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे. लेकिन अब 25 प्रतिशत किसान ही पान की खेती कर रहे है.

किसान अशोक तमोली का कहना है कि पान की खेती उनका पुश्तैनी धंधा है. रोजी-रोटी का जरिया है. लेकिन महंगाई ज्यादा होने और खेती पर अधिक खर्च आने से भारी नुकसान हो रहा है. सर्दियों में फसल खराब हो जाती है. अशोक तमोली कहते हैं, हम चाहते हैं कि राजस्थान सरकार पान की खेती को किसी बागवानी मिशन में शामिल करते हुए सब्सिडी दे, फसल का बीमा हो. इससे फसल खराब होने पर बीमा क्लेम मिल सकेगा. 

अशोक तमोली की बेटी निकिता तमोली का कहना है कि उनका पूरा परिवार पान की खेती करता है. समस्या ये है कि सर्दी आते ही कोहरे, पाले और अधिक ठंड के कारण पत्ते खराब हो जाते हैं. इससे उनका काफी नुकसान होता है. किसानों को फिस से बीज लाकर खेती करनी होती है. यहां के किसान परिवार राजस्थान सरकार से इसके लिए सब्सिडी की मांग करते हैं. किसान मदन मोहन तमोली का कहना है कि सरकार अगर पान को कृषि बागवानी में शामिल करती है तो नुकसान का फायदा मिल सकता है.

ऐसे होती है पान की खेती

पान की खेती का बरेजा (मचान) लोहे के तारों और लकड़ी के जाल से खेत के ऊपर बनाया जाता है. पान की खेती को सर्दी, गर्मी, बरसात और धूप से बचाने के लिए खेत के ऊपर लोहे और लकड़ी की सहायता से जाल बनाया जाता है. इस जाल के ऊपर घास की परत चढ़ाई जाती है जिससे पान की खेती को धूप से बचाया जा सके. खेत के चारों तरफ पत्थर की बाउंड्री वॉल लगाई जाती है. उसके बाद कतार में पान के बीच की रोपाई की जाती है. पान के बेलों को रस्सी के सहारे जाल पर चढ़ाया जाता है. सिंचाई के लिए किसान अपनी पीठ पर मटका रखकर छिड़काव करता है जो इस सर्दी के मौसम में बड़ा कठिन काम होता है.

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किसान सर्दी, गर्मी, बरसात नंगे पैर रहकर पान की देखरेख करता है. निराई-गुड़ाई करता है, सिंचाई करता है. खेत में चप्पल-जूते ले जाना वर्जित रहता है. किसान परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में नंगे पैर रहकर पान की खेती करते हैं. 

पान को परा रोग से खतरा

पान की खेती में सबसे अधिक नुकसान सर्दी के मौसम में कोहरा, ठंड और शीतलहर से होता है. पान के पत्ते काले पड़ जाते हैं. बेलें सूखने लगती हैं जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. इसके अलावा बारिश में ओले गिरने से भी किसानों को भारी नुकसान होता है. पान की खेती में गिद्ध लिपिका और परा नामक रोग लगने से भी नुकसान होता है. गर्मी के मौसम में पानी की समस्या भी किसानों के सामने बड़ी चुनौती होती है.

किसान अशोक तंबोली कहते हैं, हमारा खानदानी काम पान की खेती करना है. हम पान की खेती पर ही निर्भर हैं. हम खेती में हर साल बहुत लागत लगाते हैं. लेकिन मेहनत भी वसूल नहीं होती है. सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं, उनका हमें कोई लाभ नहीं मिलता. न पान की खेती का बीमा है, न ही यह खेती बागवानी में आती है. 25 परसेंट लोग ही अब पान की खेती करते हैं. बाकी सब लोग मजदूरी के लिए बाहर पलायन कर गए हैं. सरकार से चाहते हैं कि इसका बीमा किया जाए और इसको बागवानी मिशन में शामिल किया जाए.(रिपोर्ट-गोपाल लाल)

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