पत्रकार से किसान बने इस युवा ने शुरू की खेती, पहली बार में 350 टन आलू की पैदावार

पत्रकार से किसान बने इस युवा ने शुरू की खेती, पहली बार में 350 टन आलू की पैदावार

ये कहानी एक ऐसे युवा की है जो कहता है कि उसे किसी भी काम में सफलता नहीं मिली. 2005 में ग्रेजुएशन, लॉ डिग्री, पत्रकारिता पढ़ने के बाद कई कंपनियों में काम किया. राजस्थान के एक बड़े अखबार में भी रिपोर्टिंग की, लेकिन मन में कुछ अलग करने की तमन्ना थी क्योंकि जो भी काम किया, उसमें पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा था. 

खेत में पैदा हुए आलू दिखाते विक्रम सिंह. फोटो- माधव शर्मा
माधव शर्मा
  • Jaipur,
  • Mar 29, 2023,
  • Updated Mar 29, 2023, 2:35 PM IST

ये कहानी एक ऐसे युवा की है जो कहता है कि उसे किसी भी काम में सफलता नहीं मिली. 2005 में ग्रेजुएशन, लॉ डिग्री, पत्रकारिता पढ़ने के बाद कई कंपनियों में काम किया. राजस्थान के एक बड़े अखबार में भी रिपोर्टिंग की, लेकिन मन में कुछ अलग करने की तमन्ना थी क्योंकि जो भी काम किया, उसमें पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा था. बाड़मेर जिले के तारातरा गांव के किसान विक्रम सिंह ने पिछले साल खेती शुरू की और अब वह सफल प्रोगरेसिव किसान हैं. इन्होंने अपनी बेकार पड़ी खेतों में एक मल्टीनेशनल कंपनी से करार कर करीब 40 लाख रुपये की आलू की पैदावार ली है. किसान तक ने विक्रम सिंह से बात की.

वे बताते हैं, “ मैंने 2005 में ग्रेजुएशन के बाद एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करना शुरू किया. सात साल नौकरी करने के बाद दुबई की एक कंपनी में मैकेनिकल का काम किया. यहां मैं सफल नहीं हो पाया. इसके बाद  कोटा ओपन यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई की. फिर 2017 में एक बड़े अखबार में बाड़मेर में नौकरी करने लगा. 2020 में कोविड आया और मेरे पास काम नहीं था. तभी पिछले साल गुजरात से मेरे कुछ रिश्तेदार आए जो पेशे से किसान थे. उन्होंने मुझे खेती करने का सुझाव दिया. हमारी 25 एकड़ खेती बेकार पड़ी थी. 2022 में खेतों को तैयार किया और आलू बो दिए.”

पहली कोशिश में 350 टन आलू पैदा हुए

विक्रम कहते हैं कि मैंने इससे पहले कभी खेती नहीं की. मैं इसकी तकनीक के बारे में भी ज्यादा नहीं जानता था, लेकिन जयपुर में मेरा एक दोस्त जेट्टा फार्म से जुड़ा था. यह मल्टीनेशनल कंपनी मैककेन के साथ मिलकर भारत में काम करती है. दोस्त की सलाह पर मैंने मैककेन के साथ आलू उगाने का करार किया. इसके लिए कंपनी ने ही बीज और तकनीक उपलब्ध कराई.

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नवंबर के पहले हफ्ते में बुवाई की और अंतिम कटाई मार्च के इसी हफ्ते में हुई है. करीब 350 टन आलू 65 बीघा में पैदा हुआ है. जो पहली कोशिश में काफी अच्छी फसल है. इस आलू की कीमत कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार पहले से ही तय थी. इस तरह करीब 40 लाख रुपये की पैदावार मैंने ली है. हालांकि खेतों को तैयार करने में काफी खर्चा आया है. ट्रेक्टर, बोरिंग, कृषि उपकरण और खेती में काम आने वाले कई तरह के औजार खरीदने पड़ें हैं. इसीलिए लाभ बहुत अधिक नहीं है. 

मैक्केन के साथ हुआ करार

विक्रम सिंह ने अपनी 25 एकड़ जमीन में आलू की बुवाई की. इसका कॉन्ट्रैक्ट मल्टीनेशनल फूड कंपनी मैककेन ने लिया. कनाडा की यह कंपनी दुनियाभर में फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम करती है. इसका व्यापार करीब 160 देशों में फैला है. विक्रम सिंह को आलू की खेती के लिए मैककेन ने ही बीज के लिए तीन श्रेणी के 32,500 किलो आलू बुवाई के लिए दिए थे. पैदावार को कंपनी ने खेत से ही खरीद लिया. 

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पढ़ाई का उपयोग करें तो खेती फायदे का सौदा

विक्रम खेती में सफलता का श्रेय अपनी पढ़ाई-लिखाई को देते हैं. वे कहते हैं, “मेरे पास आर्ट्स, लॉ, पत्रकारिता की पढ़ाई और अनुभव था. साथ ही इतने साल बड़ी कंपनियों में काम भी किया. ये सब अनुभव खेती के दौरान काम आए. खेती में नई तकनीक का सहारा लिया. कई नवाचार किए.

100 रोज तक दिन-रात खेत में मेहनत की. अब उस मेहनत का परिणाम सामने है. बंजर और रेतीली भूमि में 350 टन आलू उगा लिए. इसीलिए मेरा मानना है कि खेती को भी बाकी अन्य कामों के तरह पेशेवर होकर किया जाए तो यह फायदे का सौदा है.”

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