देश में कृषि के विकास और किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए अलग-अलग स्तर पर सुविधाएं दी जाती हैं. इसके लिए कृषि अनुसंधान केंद्र से लेकर कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) का गठन किया गया है. इसके अलावा कई विभाग हैंं, जो योजनाओं और किसानों के बीच पुल का कार्य करते हैं.जिनका उद्देश्य खेती के माध्यम से किसानों और गांवों को समृद्ध बनाना है. ऐसा ही कुछ कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) रांची ने कर दिखाया है. KVK रांची ने सात जैविक ग्राम विकसित किए हैं. आइए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है और KVK रांची की इस सफलता की इनसाइड स्टोरी क्या है.
KVK रांची को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई दिल्ली द्वारा 1977 में स्थापित किया गया था, जो रामकृष्ण मिशन आश्रम मोराबादी रांची के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य कर रहा है. कृषि विज्ञान केंद्र रांची जिले एवं राज्य में दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र मारोबादी के रूप में पहचाना जाता है.दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र मारोबादी रांची विगत 46 वर्षो से तकनीकियों के मूल्यांकन, प्रत्यक्षण, प्रशिक्षण एवं प्रसार के माध्यम से रांची जिले के किसानों के आय सृजन के लिए लगातार कार्य कर रहा है.
केवीके रांची के प्रधान वैज्ञानिक अजीत कुमार बताते हैं कि केवीके भारत में कृषि आधारित जिला स्तरीय संस्थान है, जिनका काम किसानों को खेती की नई-नई जानकारियों से परिचित करना है. इस समय देश में 731 कृषि विज्ञान केंद्र है.
पिछले कुछ वर्षो में केवीके रांची के द्वारा कई मुख्य कार्य किए गए हैं. इनमें सात आदर्श जैविक गांव स्थापित करना प्रमुख हैं. रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड के धुरलेटा, बुधाकोचा, पिप्रबेरा, गुन्द्लितोली, सिमरातोली, दुबलाबेरा एवं नाग्राबेरा गांव को आदर्श जैविक ग्राम के रूप में विकसित किया गया है.
केवीके रांची द्वारा लाह की खेती के जरिए आय को को बढ़ावा देने के लिए लाह का प्रशिक्षण, प्रत्यक्षण एवं मूल्य संबर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी क्रम में लाह प्रसंस्करण इकाई की स्थापना सिल्ली प्रखंड के बनता गांव में स्थापित किया गया है. वहीं केवीके रांची देशी चावल की किस्मों भुटकु और तुलसी मुकुल का संरक्षण, संवर्धन और व्यावसायीकरण का कार्य किया गया है. इसके तहत 61 गांवों के 1200 किसान 277 हेक्टेयर में सुगंधित चावल की खेती कर रहे हैं.
केवीके रांची ने शहद में पहला किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) का गठन किया है. मधुमक्खी पालन में "विवेकानंद सेल्फ-सपोर्टिंग सोसाइटी" का गठन केवीके रांची द्वारा किया गया था. अब तक 475 से अधिक किसान समूह इससे जुड़ चुके हैं. झारखण्ड मधु के नाम से शहद को बाजार में बेचा जा रहा है.केवीके रांची एक दिन से लेकर 180 दिनों तक आवासीय प्रशिक्षण आयोजित करता है. इसके तहत प्रत्येक वर्ष 4000 से 5000 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. इतना ही नहीं केवीके के द्वारा 120 गांवों को गोद लिया गया है. केवीके रांची के द्वारा प्रत्येक वर्ष 700 से 800 कुंतल बीज पैदा करके किसानों तक पहुंचाया जाता है. अपने उत्कृष्ट कार्यो के चलते रांची केवीके को तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्ताम कृषि विज्ञान केंद्र का पुरस्कार मिल चुका है.
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