देश कई राज्यों में जहां इस वक्त मॉनसूनी बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं. वहीं कुछ ऐसे भी राज्य हैं जो बारिश के लिए तरस रहे हैं. झारखंड, बिहार और ओडिशा में कई ऐसे जिले हैं जहां पर किसान खेती करने के लिए बारिश का इंतजार कर रहे हैं. इन राज्यों में 40 से 70 फीसदी तक कम बारिश हुई है. ओडिशा के सुंदरगढ़ के अलावा कालाहांडी के किसान भी बारिश की कमी के कारण चिंतित हैं. यहां पर 66 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है इसके कारण किसान अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या वो इस बार खरीफ की खेती कर पाएंगे या नहीं. जिले की इस वर्तमान स्थिति को देखते हुए खरीफ कृषि रणनीति की बैठक की गई और पूरे हालात पर नजर रखी जा रही है. इसके अलावा किसानों को फसल विविधीकरण अपनाने के लिए जागरूक किया जा रहा है और उन्हें फसल बीमा करने की सलाह दी जा रही है.
जिले में मॉनसून की स्थिति को देखते हुए खरीफ की अलग रणनीति तैयार की जा रही है इसे लेकर एक बैठक भी आयोजित की गई. जिले की कलेक्टर अन्वेषा रेड्डी भी इसमें शामिल हुई. इस दौरान यह तय किया गया कि जिले में 1,84,161 हेक्टेयर में धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया था. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक दलहनी फसलों के लिए कृषि विभाग ने 66,885 हेक्टेयर, मक्का के लिए 16,751 हेक्टेयर, रागी के लिए 4,925 हेक्टेयर और तिलहन फसलों के लिए 12,934 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया है. कपास को 71,884 हेक्टेयर में कवर करने का लक्ष्य रखा गया था.
हालांकि अब जिले में धान और कपास के लिए निर्धारित क्षेत्रफल में खेती करना असंभव लग रहा है क्योंकि मॉनसून का शुरुआती स्पेल लंबे समय तक सूखा रहा. इसके कारण धान और कपास की खेती पर असर पड़ रहा है. किसानों ने यहां पर डीएसआर तकनीक को अपनाते हुए 30,000 हेक्टेयर में धान की खेती की थी, इसके अलावा 70 हेक्टेयर में किसानों ने धान की नर्सरी तैयार की थी वो भी अब सूख रही है. किसान नर्सरी में नमी बनाए रखने के लिए कंटेनरों में पानी लेकर जा रहे हैं. वहीं अगर कपास की बात की जाए तो कपास की खेती के लिए लक्षित क्षेत्र 71,884 हेक्टेयर के मुकाबले अब तर तक 24,560 में इसकी खेती की गई है. जबकि ओडिशा में सबसे अधिक कपास की खेती कालाहांडी में ही होती है.
बैठक में स्थिति पर कड़ी नजर रखने और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए एक आकस्मिक योजना तैयार करने का फैसला किया गया. इसके साथ ही किसानों को धान की खेती के अलावा दूसरे फसलों की खेती के बारे में जागरूक करने की बात कही गई ताकि किसानों फसल विविधिकरण को अपना सकें और जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा नहीं हो उन क्षेत्रों में कम अवधि की फसलों की खेती कर सकें.