ओडिशा के एक छोटे से गांव से अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच रही लेमनग्रास की महक, आदिवासी किसानों के जीवन में आ रहा बदलाव

ओडिशा के एक छोटे से गांव से अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच रही लेमनग्रास की महक, आदिवासी किसानों के जीवन में आ रहा बदलाव

जिले का यह समुदाय पारंपरिक तौर पर अपनी आजीविका के लिए फसल और वन संसाधनों पर निर्भर है, पर इन माध्यमों से उन्हें स्थायी तौर पर पर्याप्त आजीविका नहीं मिलती है. क्योंकि यहां पर किसानों को पास संसाधन और तकनीकी ज्ञान की कमी है.

लेमन ग्रास की खेती                                   फाइल फोटोलेमन ग्रास की खेती फाइल फोटो
पवन कुमार
  • Bhubaneshwar ,
  • Oct 16, 2023,
  • Updated Oct 16, 2023, 7:20 PM IST

लेमन ग्रास की खेती किसानों के लिए एक फायदे का सौदा होती है क्योंकि लागत कम होती और देख रेख कम करना पड़ता है साथ ही कम पानी में भी इसकी अच्छी उपज हो जाती है. इसके अलावा लेमन ग्रास की खेती में यह फायदा है कि एक बार इसे लगाने के बाद तीन साल तक किसान फसल काट सकते हैं. झारखंड और ओडिशा जैसे राज्य में किसान इसकी खेती कर रहे है औऱ अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. ओडिशा के आदिवासी आबादी बहुल जिले मयूरभंज की पहचान भी लेमनग्रास खेती से होने लगी है. जिले में भारत सरकार द्वारा घोषित कई 'विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह' भी शामिल हैं.

जिले का यह समुदाय पारंपरिक तौर पर अपनी आजीविका के लिए फसल और वन संसाधनों पर निर्भर है, पर इन माध्यमों से उन्हें स्थायी तौर पर पर्याप्त आजीविका नहीं मिलती है. क्योंकि यहां पर किसानों को पास संसाधन और तकनीकी ज्ञान की कमी है. इसलिए इन किसानों की कृषि प्रणाली में सुधार करके उनकी आजीविका को और बेहतर बनाना असंभव है. इसे देखते हुए जिले में लेमन ग्रास की खेती शुरू की गई. क्योकि इसके लिए अत्याधुनिक तकनीक या संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है. जिले में लेमनग्रास की खेती शुरू की गई. इसके बाद लेमनग्रास डिस्टीलेशन प्लांट लगाए गए, जहां से तेल निकाल कर और पैकेजिंग करके इसे बेचा जाता है. इससे एक करोड़ रुपये तक का कारोबार हुआ है इसके किसानों की 40 फीसदी तक बढ़ी है.

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नाबार्ड कर रहा फंडिंग

प्रदेश में इसकी खेती के लिए एक व्यापक और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की तरफ से क्लस्टर-आधारित व्यवसाय संगठन के तहत ओडिशा के 10 से अधिक किसान उत्पादक संगठनों फंडिंग की जा रही है. ये एफपीओ किसानों के समूहों से बने होते हैं, जो सदस्यों को लेमनग्रास की खेती से लेकर मार्केटिंग तक सहायता और सेवाएं प्रदान करते हैं. किसानों को बाजार के मुताबिक तैयार करना और अवसरों को बढ़ाना ही इनका उद्देश्य है. 

लेमनग्रास की पैकेजिंग ने राह बनाई आसान

इन एफपीओ में से एक आदिवासी सोसोनम एग्रो फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी है, जिसमें 59 महिला लेमनग्रास किसानों सहित 517 आदिवासी किसान हैं. मयूरभंज में स्थित, समूह को लेमनग्रास की खेती में विविधता लाने के लिए सपोर्ट आवश्यकता थी. वहीं दूसरी तरफ ये किसान लेमनग्रास के लिए एक बेहतर बाजार की तलाश कर रहे थे. इसके बाद संस्था पैलेडियम ने सोसोनम एग्रो के लीडर्स और किसानों को आवश्यक तकनीकी और क्षमता-निर्माण सहायता प्रदान की. इस सहयोगात्मक प्रयास से लेमनग्रास की खेती, तेल निष्कर्षण और लेमनग्रास तेल की बोतलबंद और पैकेजिंग को सफलतापूर्वक अपनाया गया.

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अतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच रहे उत्पाद

इसके अलावा, पैलेडियम ने सोसोनम एग्रो को अमेरिका और फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने में मदद की. जिसके परिणामस्वरूप लेमनग्रास उत्पादों का एक्सपोर्ट हुआ. इससे एफपीओ से जुड़े लेमनग्रास किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा, साथ ही आदिवासी किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ. इसके साथ की अब किसान उस जमीन से भी कमाई कर रहे जो कभी बंजर भूमि हुआ करती थी. इस उपलब्धि के बारे में बोलते हुए, पैलेडियम इंडिया के सीईओ अमित पाटजोशी ने कहा कि सोसोनम एग्रो एफपीओ को सुगंधित फसलों की खेती में विशेषज्ञता रखने वाला राज्य का पहला किसान उत्पादक संगठन होने का गौरव प्राप्त है. जिनके उत्पाद अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच रहे हैं. आज इस एफपीओ के किसानों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ हो रहा है, जबकि 1500 से अधिक किसान अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सफलता का लाभ उठा रहे हैं.

 

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