बिहार में गेहूं की पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देने की तैयारी, सरकार ने बनाई ये खास योजना

बिहार में गेहूं की पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देने की तैयारी, सरकार ने बनाई ये खास योजना

बिहार सरकार पारंपरिक गेहूं की किस्मों की खेती को बढ़ावा देने जा रही है. सरकार गेहूं की खेती को लेकर विशेष योजना बनाने की तैयारी कर रही है. इसको लेकर कृषि विभाग के सचिव ने हरी झंडी दे दी है. किसानों को जल्द इन किस्मों की खेती की जानकारी दी जाएगी. 

कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल. फाइल फोटो-किसान तक कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल. फाइल फोटो-किसान तक
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • PATNA,
  • Sep 02, 2023,
  • Updated Sep 02, 2023, 7:39 PM IST

समय की मांग को देखते हुए पारंपरिक बीजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार विशेष योजना बनाने की तैयारी में है. जिस तरह सूबे की सरकार गंगा नदी के किनारे जैविक कॉरिडोर योजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है. उसी कड़ी में कृषि विभाग विभिन्न फसलों की पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास करने जा रही है. कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल बताते हैं कि इस बार रबी मौसम में गेहूं की पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा दिया जाएगा. इसमें सोना मोती, वंशी, टिपुआ सहित कई गेहूं की किस्में शामिल हैं. 

ये पुरानी गेहूं की किस्में स्वास्थ्य सहित जलवायु में हो रहे परिवर्तन के प्रति सहनशील होती हैं. ये प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत मानी जाती हैं. वहीं ये कम समय में आसानी से पक जाती हैं. साथ ही इन किस्मों की पैदावार भी अधिक होती है.

ये भी पढ़ें-Subsidy for Cow: अब पशुपालक बनना हुआ आसान, गाय-भैंस पालन पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दे रही बिहार सरकार 

सभी जिलों के दो गांवों में खेती

कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा, राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है. हाल के समय में 13 जिलों में गंगा नदी के किनारे जैविक खेती की जा रही है. वहीं जैविक विधि से पारंपरिक गेहूं की खेती विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. इसको देखते हुए कृषि विभाग विशेष योजना बनाने जा रहा है. वहीं आगामी रबी मौसम में प्रत्येक जिले के दो- दो गांवों में पारंपरिक गेहूं की किस्मों की खेती शुरू की जाएगी. इन पुरानी किस्मों में सोना मोती, वंशी, टिपुआ सहित अन्य किस्मों को शामिल किया जाएगा.

ये भी पढ़ें-Kadaknath: सावन खत्म होते ही लखनऊ में देसी और कड़कनाथ मुर्गे की बढ़ी डिमांड, यहां जानें कीमत से लेकर खासियत तक

वे आगे कहते हैं कि गेहूं की पारंपरिक किस्में उच्च उत्पादकता के साथ प्राकृतिक तरीके से अपने क्षेत्र में संतुलन बनाए रखती हैं. गेहूं की पुरानी किस्मों की खेती में किसानों को कम खर्च, कम मेहनत में अधिक उत्पादन मिलता है. वहीं स्थानीय बीज और प्राकृतिक उर्वरकों के साथ अच्छी तरह से इन किस्मों को प्रबंधित भी किया जा सकता है. गेहूं की इन किस्मों की बढ़ती मांग को देखते हुए इन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है. इसको लेकर विशेष योजना बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. 

पारंपरिक गेहूं से मरीजों को फायदा

कृषि विभाग के सचिव के अनुसार पारंपरिक गेहूं प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत है. इसमें ग्लूटेन और ग्लाइसीमिक तत्व कम होने के कारण यह डायबिटीज (Diabetes) और हृदय रोग (Heart Disease) मरीजों के लिए काफी लाभकारी है. साथ ही इसमें अन्य अनाजों की तुलना में कई गुना ज्यादा फोलिक एसिड (Folic Acid) नामक तत्व पाया जाता है, जो रक्तचाप और हृदय रोगियों के लिए रामबाण है.

MORE NEWS

Read more!